वादीगण का वाद यह है कि वादी सं0-1 ने करछना कोहड़ार घाट रोड पर एक कमरे का निर्माण कराया इसी के आधार पर जनता के विरूद्ध प्रतिकूल कब्जे का तर्क ले रहे है।
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माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने तमिलनाडू हाउसिंग बोर्ड की निर्णय विधि में ट्रेस पासर के संबंध में व्यवस्था दिया है कि प्रतिकूल कब्जे वाला व्यक्ति मूल भू स्वामी के विरूद्ध निषेधाज्ञा नहीं प्राप्त कर सकता है।
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उपरोक्त विश्लेषण के उपरान्त यह साबित हो जाता है कि न तो वादीगण प्रश्नगत आराजियों के मालिक काबिज है और न ही प्रतिकूल कब्जे के आधार पर मालिक साबित करने में स्वयं को सफल हुये हैं।
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प्रतिवादी का यह कहना सही है कि वादी द्वारा प्रतिकूल कब्जे के आधार पर अपना मामला लाया गया है भले ही मामला व्यादेश का है किन्तु व्यादेश में अधिकारों की उद्घोषणा का बिन्दु निहित होता है।
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वाद बिन्दु सं01 वादग्रस्त सम्पत्ति की मिलकियत और कब्जे के सम्बन्ध में बनाया गया है और इसी से संबंधित वाद बिन्दु सं02 प्रतिकूल कब्जे के आधार पर मिलकियत परिपक्व होने का प्रष्न निहित किया गया है।
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दि0-23. 1.06 को वादपत्र संशोधन के माध्यम से वादी द्वारा यह झूठा तथ्य दावे में जोड़ा गया है कि वादी सं0-1 ने लगभग 1975-76 में इसका निर्माण किया है और प्रतिकूल कब्जे के आधार पर वह मालिक है।
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यहां यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि वादीगण द्वारा वादपत्र में स्वयं को प्रतिकूल कब्जे के आधार पर दुकानों का मालिक काबिज माना है और ऐसा उन्होंने आम लोगों के विरूद्व अधिकारों से इनकार करते हुये कहा है।
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ए. आई. आर. 817 श्रीमती चन्द्र का न्ता बे न बनाम में अवधारित किया गया है कि प्रतिकूल कब्जे वादीलाल बापालाल मो द के अर्न्तगत अनन्य स्वत्व का दावा करने का आशय ही कब्जे के प्रतिकूल बनाता है।
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वादपत्र संशोधन द्धारा धारा-6अ जोड़कर कहा गया है कि वादीगण का वादग्रस्त सम्पत्ति पर इसके निर्माण की तिथि से कब्जा है और वादीगण द्धारा वादग्रस्त सम्पत्ति पर अपने अधिकार प्रतिकूल कब्जे के आधार पूर्ण कर लिया गया है।
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वादी को प्रतिकूल कब्जे के आधार पर अपना हक इस भूमि में प्राप्त हो चुका है और प्रतिवादीगण का इस भूमि मे न कोई हक है और न कब्जा है, अतः वादी का अस्थायी व्यादेश का प्रार्थना पत्र सुना जाये।