वस्तुतः महाभारत युद्ध विश्व का प्रथम विश्व-युद्ध था किन्तु भारतीय इतिहासकारों द्वारा इसे सही रूप में प्रस्तुत न किये जाने के कारण विश्व इतिहास इसे विश्व यूद्ध की मान्यता प्रदान नहीं करता है.
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वस्तुतः महाभारत युद्ध विश्व का प्रथम विश्व-युद्ध था किन्तु भारतीय इतिहासकारों द्वारा इसे सही रूप में प्रस्तुत न किये जाने के कारण विश्व इतिहास इसे विश्व यूद्ध की मान्यता प्रदान नहीं करता है.
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आधुनिक शासकों के चरित्र के बारे में सरोकिन ने कहा है-' बेल्जियम से निरपेक्ष रक्षा के संधिपत्र को रद्दी के कागज़-सा फाड़ कर जर्मनी ने बेल्जियम पर आक्रमण करते हुए प्रथम विश्व-युद्ध का सूत्रपात किया था।
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प्रथम विश्व-युद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना ने ऑटोमन से इस शहर का नियंत्रण छीन लिया और 1947 में फिलीस्तीन के लिये बनी संयुक्त राष्ट्र संघ की विभाजन योजना (United Nations Partition Plan for Palestine) के तहत इसे एक अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में शामिल किया जाना था.
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भारतीय इतिहासकार श्री पन्निकर का मत है कि पाश्चात्य देशों के सम्पर्क से चीन को लाभ से अधिक क्षति उठानी पड़ी और प्रथम विश्व-युद्ध के पाँच-छः वर्षों के पश्चात् तक चीन का गौरव धूल-धूसरित होता रहा, राजनीतिक अखण्डता टूटती रही और प्रशासनिक दृढ़ता लायी नहीं जा सकी।
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भारतीय इतिहासकार श्री पन्निकर का मत है कि पाश्चात्य देशों के सम्पर्क से चीन को लाभ से अधिक क्षति उठानी पड़ी और प्रथम विश्व-युद्ध के पाँच-छः वर्षों के पश्चात् तक चीन का गौरव धूल-धूसरित होता रहा, राजनीतिक अखण्डता टूटती रही और प्रशासनिक दृढ़ता लायी नहीं जा सकी।
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अरे, प्रथम विश्व-युद्ध का भी, यारों समय आया और चला गया लड़ाई का कारण लेकिन मेरे पल्ले कभी नहीं पड़ा पर मैंने उसे मानना सीख लिया और मानना भी गर्व के साथ क्योंकि अपन मरों को नहीं गिनते जब ईश्वर का साथ अपने साथ हो
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भारतीय इतिहासकार श्री पन्निकर का मत है कि पाश्चात्य देशों के सम्पर्क से चीन को लाभ से अधिक क्षति उठानी पड़ी और प्रथम विश्व-युद्ध के पाँच-छः वर्षों के पश्चात् तक चीन का गौरव धूल-धूसरित होता रहा, राजनीतिक अखण्डता टूटती रही और प्रशासनिक दृढ़ता लायी नहीं जा सकी।
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प्रथम विश्व-युद्ध में अंग्रेजों के लिए भारतीयों की सैनिक भर्ती कराने के अभियान से आरंभ कर, खलीफत की पुनर्स्थापना का विचित्र आंदोलन, आदि से होते हुए अंत में करोड़ों पंजाबियों, बंगालियों के साथ विश्वासघात करते हुए, अपनी बात से पलट कर भारत-विभाजन करवाने तक और इस बीच सत्य-अहिंसा की कोरी रट के साथ, गांधी का एक भी अभियान न सफल, न सुखद रहा।
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पिछली बार हमने आपका परिचय सोवियत काल के रूसी लेखक अलेक्सेई तोलस्तोय से करवाया था | रूसी कालजयी साहित्य की परम्पराओं पर चलते हुए वह अपनी रचनाओं में आम आदमी के जीवन के दर्पण में युगांतरकारी ऐतिहासिक घटनाओं को प्रतिबिंबित करते थे | तो लीजिए, प्रस्तुत है उनकी ऐसी ही एक कहानी | प्रथम विश्व-युद्ध, 1917 की फरवरी और अक्टूबर क्रांतियां और फिर गृह-युद्ध-इन सबके पाटों में पिसी एक सीधी-सादी दर्जिन की ज़िंदगी | कात्या नाम की यह दर्जिन ही है “