साथी, सब कुछ सहना होगा! मानव पर जगती का शासन,जगती पर संसृति का बंधन,संसृति को भी और किसी के प्रतिबंधों में रहना होगा!साथी, सब कुछ सहना होगा!हम क्या हैं जगती के सर में!जगती क्या, संसृति सागर में!एक प्रबल धारा में हमको लघु तिनके-सा बहना होगा!साथी, सब कुछ सहना होगा!आओ, अपनी लघुता जानें,अपनी निर्बलता पहचानें,जैसे जग रहता आया है उसी तरह से रहना होगा!साथी, सब कुछ सहना होगा!
22.
देवापगा की इस सतत प्रवाहमयी प्रबल धारा के साथ बह रहे हैं पुष्प बह रहे हैं चमक बिखेरते दीप स्नान कर पापों से निवृत्त होने का भ्रम पालते लोग अगले घाट पर उसी धारा में बह रहे हैं शव प्रवाहित हैं अस्थियां तट पर उठ रही हैं चिताओं से ज्वाला दोनों घाटों के बीच रात के तीसरे पहर मैं बैठा हूं सोचता हूं क्या है आखिर मार्ग निर्वाण का? पहले घाट पर जीवन के उत्सव में... दूसरे घाट पर मृत्यु के नीरव में....?