दूसरे विभाग में 100 दुक हैं और प्रत्येक दुक में विधान ओर निषेध रूप से दो दो विषयों का प्ररूपण किया गया है।
22.
दूसरे विभाग में 100 दुक हैं और प्रत्येक दुक में विधान ओर निषेध रूप से दो दो विषयों का प्ररूपण किया गया है।
23.
इस अधिकार में पहले आठों मूलकर्मों और बाद में प्रत्येक कर्म की उत्तर प्रकृतियों को लेकर बंधस्थानों, उदयस्थानों और सत्वस्थानों का प्ररूपण है।
24.
किंतु वर्तमान में ऐसा न होकर इसके प्रथम खंड में हिंसादि पाँच पापों का और दूसरे खंड में अहिंसादि व्रतों का प्ररूपण पाया जाता है।
25.
प्रकृत अधिकार में प्रकृति और स्थिति का विस्तृत, सांगोपांग एवं मौलिक प्ररूपण है, जो पुस्तक 2,3 व 4 इन तीन में पूरा हुआ है।
26.
गृद्धपिच्छ के तत्त्वार्थसूत्र * में, जो जैन संस्कृत वाङमय का आद्यसूत्र ग्रन्थ है, सिद्धान्त के साथ दर्शन और न्याय का भी अच्छा प्ररूपण है।
27.
तेरहवें पूर्व क्रियाविशाल में लेखन, गणना आदि बहत्तर कलाओं, स्त्रियों के चौंसठ गुणों और शिल्पों, ग्रन्थरचना सम्बन्धी गुण-दोषों व छन्दों आदि का प्ररूपण किया गया था।
28.
इसमें प्राचीन काल के दार्शनिक वादों जैसे क्रियावाद, अक्रियावाद, नियतिवाद, अज्ञानवाद आदि का प्ररूपण तथा निराकरण किया गया है तथा श्रमण, ब्राह्मण, भिक्षु, निग्र्रंथ आदि के स्वरूप की व्याख्या की गई है।
29.
ऐसा प्रतीत होता है कि अन्त के जिन पूर्वों में कलाओं, विद्याओं, मन्त्र-तन्त्रों व इन्द्रजालों का प्ररूपण था, वे सर्वप्रथम ही मुनियों के संयमरक्षा की दृष्टि से निषिद्ध हो गये।
30.
पिछले अधिकार के अन्त में जो सत्वस्थान का कथन किया है वह आयु के बंध और अबंध का भेद न करके किया गया है तथा इस अधिकार में भंगों के साथ उनका प्ररूपण है।