१. कनिष्ठा अपर्वतनी (abductor digiti quinti), २. अंत: प्रकोष्ठ मणिबंध प्रसारिणी (extensor carpi ulnaris) ३. सामान्य अंगुलि प्रसारिणी, ४. कूर्पर-पृष्ठिका (anconeus) ५. दीर्घ तथा लघु बहिष्प्रकोष्ठ मणिबंध प्रसारणी, ६. प्रगडप्रकोष्ठिकी (brachioradialis), ७. प्रगंडिकी, ८. अंसच्छदा, ९. कटि पाश्व्रच्छदा (latissimus dorsi), १० अवअंस पृष्ठिका (infra spinatus) ११. लघु असाभिवर्तनी, १२. दीर्घ असाभिवर्तनी, १३. ट्राइसेप्स ब्रैकाई, १४. बहिर्मणिबंध आकुंचनी, १५. अतमंणिबंध आकुंचनी, १६. लघु अंगुष्ठ अपवर्तनी तथा १७.
23.
जैसे, “ स ' की ध्वनिशक्तियां हैं-तहव्रा, कुमुदवती, मन्दा और छन्दोवती. ” रे ' की ध्वनिशक्तियां हैं-दयावती, रंजनी और रतिका. “ ग ' की रौद्री और क्रोधा. ” म ' की वज्रिका, प्रसारिणी प्रीति और माजर्नी. “ प ' की क्षिति, रक्ता, सांदीपिनी एवं अलापिनी. ” ध ' की मदन्ती, रोहिणी और रम्या.
24.
१) अजमोदादी चूर्ण + षड-धरण चूर्ण + समीर पन्नग + जीरक + रस-पाचक + एरंड-मूल + दशमूल-सुबह शाम-गर्म जल से २) आम पाचक वटी-व्यानोदान १-१ ३) गन्धर्व हरीतकी चूर्ण-स्वप्न काले गरम पानी से योग बस्ती-दाशमूलिक निरुह + सहचरादी तेल मात्रा बस्ती अभ्यंग के लिए-सहचरादी / प्रसारिणी तेल + सैन्धव अत्यधिक शूल प्रदेशे-अग्नि कर्म सामता कम होने के बाद त्रयोदशांग, बलारिष्ट आदि का प्रयोग करे..