इस मंदिर के प्रांगन में मिले प्रस्तर खंड, मूर्तियाँ आदि अवशेष सातवीं शताब्दी के आसपास निर्मित मंदिरों की शैली के हैं, हरा-नीलापन लिए इन बलुआ पत्थरों पर भी युगल देव मूर्तियाँ उत्कीर्ण है.
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पिरामिड मर्मज्ञ इवान हैडिंगटन ने गणना कर हिसाब लगाया कि यदि ऐसा हुआ तो इसके लिए दर्जनों श्रमिकों को साल के ३६५ दिनों में हर दिन १० घंटे के काम के दौरान हर दूसरे मिनट में एक प्रस्तर खंड को रखना होगा।
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पिरामिड मर्मज्ञ इवान हैडिंगटन ने गणना कर हिसाब लगाया कि यदि ऐसा हुआ तो इसके लिए दर्जनों श्रमिकों को साल के ३६५ दिनों में हर दिन १० घंटे के काम के दौरान हर दूसरे मिनट में एक प्रस्तर खंड को रखना होगा।
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विश्वास किया जाता है कि यह मंदिर कभी पंचायतन रहा होगा परंतु वर्तमान में चारों कोनों पर स्थापित लघु मंदिर समय के थपेड़ों के कारण नष्ट हो गए हैं, आज इन मंदिरों की नींव के प्रस्तर खंड ही बस दिखाई पड़ते हैं।
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सुबह जब सो कर उठा तो देखा, धूप अच्छी तरह बिखरी हुयी है और आश्रम के एक और एक विशाल प्रस्तर खंड पर कोई विदेशी अपनी छोटी सी बच्ची के साथ बैठा धूप खा रहा था और सामने से हमारे साथ की भगतिन जी गंगा में डुबकी लगाकर भीगे कपड़ों में काँपती चली आ रही हैं.
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भारतीय पुरातत्व के अथक अन्वेषक सर अलेक्जेंडर कनिंघम को जौनपुर की बड़ी मस्जिद के प्रस्तर खंड पर इश्वरवर्मन का एक अभिलेख मिला था, जिससे मौखरियों के इतिहास को प्रकाशित करनें में काफी मदत मिली थी तथा इसी अभिलेख की सातवीं लाइन में धार के राजा, आन्ध्र के राजा और रेवतक (सौरास्त्र) के राजा के साथ हुए संघर्षों का उल्लेख है.
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उस वर्षा और आंधी में पागल की तरह ऑफिस में जाकर करीम खां को बुलाकर मैंने कहा-‘ इसका क्या अर्थ है, मुझे साप-साप खोलकर बताओ! ‘ वृद्ध ने जो कहा उसका स्पष्ट अर्थ यह है, किसी समय उस प्रासाद में अनेक अतृप्त वासनाएं, अनेक उन्मत्त संभोगों की शिखाएं आलोड़ित होती थीं-उस समस्त चित्तदाह से, उन सब व्यर्थ कामनाओं के अभिशाप से इस प्रासाद का प्रत्येक प्रस्तर खंड क्षुधार्त्त हो उठा है, जीवित मनुष्य को पाने पर वह उसको लालायित पिशाचिनी के समान खा डालना चाहता है।
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म्रिस के इस महान पिरामिड को लेकर अक्सर सवाल उठाये जाते रहे हैं कि बिना मशीनों के, बिना आधुनिक औजारों के मिस्रवासियों ने कैसे विशाल पाषाणखंडों को ४ ५ ० फीट ऊंचे पहुंचाया और इस बृहत परियोजना को महज २ ३ वर्षों मे पूरा किया? पिरामिड मर्मज्ञ इवान हैडिंगटन ने गणना कर हिसाब लगाया कि यदि ऐसा हुआ तो इसके लिए दर्जनों श्रमिकों को साल के ३ ६ ५ दिनों में हर दिन १ ० घंटे के काम के दौरान हर दूसरे मिनट में एक प्रस्तर खंड को रखना होगा।