प्राप्त वस्तु को क्या शोधा जाए? अभी तक की आवाज था-“सत्य को खोजेंगे!” अब यह आया-सत्य हमको प्राप्त है, उसका हमको अनुभव करना है।
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जो मुझे अनन्य भाव से भजता है जिसके लिये योग (अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति) और क्षेम (प्राप्त वस्तु का लक्षण) का प्रबन्ध मैं ही करता हुँ।
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~ वेदव्यास जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, जिसने न दुख देखा है, न सुख-वह संतुष्ट कहा जाता है।
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अर्थात् जो मुझे अनन्य भाव से भजता है जिसके लिये योग (अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति) और क्षेम (प्राप्त वस्तु का लक्षण) का प्रबन्ध मैं ही करता हुँ।
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-वेदव्यास जो अप्राप्य वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, जिसने न दुख देखा है न सुख-वह संतुष्ट कहा जा सकता है ।
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जो कुछ हमें मिला है, उसमें किसी प्रकार की शंका नहीं है, परन्तु प्राप्त वस्तु को सार्थक करने की योग्यता प्राप्त नहीं हो, तब तक मिली हुई सामग्री निरर्थक है।
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परीक्षा का नतीजा हो या नौकरी, दोस्ती, मकान, पोशाक, रंग-रूप और खान-पान आदि सबके लिए आपके मन में एक आदर्श चित्र बनता रहता है और यदि आपको प्राप्त वस्तु या स्थिति उस तस्वीर से मेल नहीं खाती तो आप निराश हो जाते हैं।
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आपकी भौतिक इच्छाओं की पूर्ति होने या होते रहने की स्थिति में आपको सुखानुभूति होती है, किन्तु जैसे ही कोई विपरीत अवस्था आती है अथवा प्राप्त वस्तु में बाधा उत्पन्न होती है, आपका सुख, दुःख में बदलते देर नहीं लगती।
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परीक्षा का नतीजा हो या नौकरी, दोस्ती, मकान, पोशाक, रंग-रूप और खान-पान आदि सबके लिए आपके मन में एक आदर्श चित्र बनता रहता है और यदि आपको प्राप्त वस्तु या स्थिति उस तस्वीर से मेल नहीं खाती तो आप निराश हो जाते हैं।
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के योग क्षेम में, अर्थात् अप्राप्य वस्तु की प्राप्ति कराने में, और प्राप्त वस्तु की सुरक्षा कराने में, अथवा संसार यात्रा के निर्वाह में, सर्वथा समर्थ हो, और सम्पूर्ण कल्याणों को प्रदान करने में तत्पर हो, इस लोक तथा परलोक के उपयुत्तफ सि(ान्तों के उपदेश में भी कुशल हो।