जिस समाज में विशिष्ट सामन्ती परम्पराओं और आस्थाओं के चलते औरत की यौनशुचिता को ही आदमी की इज्जत माना जाता हो, वहाँ बेटी का प्रेम में पड़ना और फिर घर से भाग जाना अचानक आयी किसी दैवीय विपदा से कम नहीं होता।
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भरोडिया जी, आपने प्रेम की नहीं, बिजनेस के बात की है जहाँ पर हानि लाभ को कल्कुलैत करने के बाद......................, प्रेम की स्वाभिकता ही ख़त्म जो जाती है इससे, और इस तरह के कदम (प्रेम में पड़ना या शादी करना) केवल ना समझ ही नहीं करते बल्कि व्यक्स्त, समझदार और समाज में अपना नाम रखने वाले भी करते हैं, अंतर ये है की अगर वो शक्ति शाली है तो वही समाज अपनी पूछ दबा कर बैठ जाता है और अगर निर्दन हो तो..............
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मां ने उस समय में कविताएं लिखीं, जब लड़कियों के कविता लिखने का मतलब था किसी के प्रेम में पड़ना और बिगड़ जाना, कॉलेज की कॉपियों के पन्नों के बीच छुपा कर रखती मां कि कोई पढ़ न ले उनकी इबारत सहेज कर ले आईं ससुराल पर उन्हें पढ़ने की न फुर्सत मिली, न इजाजत! मां ने जब सुना, उनकी शादी के लिए रिश्ता आया है, कलकत्ता के स्कॉटिश चर्च कॉलेज से बी कॉम पास लड़के का, मां ने कहा, मुझे नहीं करनी अंग्रेजी दां से शादी! उसे हिंदी में लिखना-पढना आना चाहिए!