हिजड़ों की तालियां की जुगलबंदी और गालियों के जवाबी कीर्तन को फंसाव और बचाव पार्टी हौसला आफजाई करते हुये और ये दिल मांगे मोर कहते हुये आंनद सागर में लहालोट होते रहेंगे।
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हिजड़ों की तालियां की जुगलबंदी और गालियों के जवाबी कीर्तन को फंसाव और बचाव पार्टी हौसला आफजाई करते हुये और ये दिल मांगे मोर कहते हुये आंनद सागर में लहालोट होते रहेंगे।
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२४ यानी, नारीवाद की घोषित विरोधी मन्नू भंडारी के रास्ते से बचपन में ही सामुदायिक वफादारी या घेटोकरण का वह शिकंजा हट गया था, जिसका फंसाव प्रभा खेतान को सारे जीवन एक निश्चित संदर्भ में गतिहीन किये रहा।
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-पीढी से सौंपी यह इस अमानत ने तो आजादी ही छीन लिया है! रेल विभाग हो या कोई अन्य फंसाव! बछड़े को नाथ तो पहना ही दी जाती है, फिर भला जुतेगा कैसे नहीं! पढ़ कर सुन्दर लगा! आभार!
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फंसाव ऐसा है कि ' ' फेबल '' बताकर कविता के आदि, मध्य और उत्तम प्रदेश में विचरने के बाद उन्हें यह सुबोध मिला कि “ कविजी का यथार्थ से कोई जीवंत सम्बन्ध नहीं है-वह एक रूपकात्मक सम्बन्ध है जो एक मृत रूपक (वक्त का पहिया) के अनुरूप ही ' मृत ' है ”... यह क्या कविता नहीं कह रही गिरिराज जी?...
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और राजनीति आदि सब का कुपाठ करने का हक है-मेरा पठन एक शल्य-क्रिया है यह आप विश्लेषण से नहीं कहते क्योंकि यह एक शल्य क्रिया है यह एक प्रदत्त की स्वीकार कर लिया गया है शुरू में ही (इस रूपक के समर्थन से तो हम किसी रुग्ण वस्तु की बात कर रहे हैं जिसकी शल्य क्रिया की गयी है-व्याधि से छुटकारे के लिये) फंसाव ऐसा है कि ''