अब लगभग विधवा जीवन [हालां कि उन के जीवन व्यवहार में यह वैधव्य कहीं दीखता नहीं, माथे पर चटक सिंदूर मय मंगलसूत्र के अभी भी खिलता है.] जी रही रेखा, हालां कि मुकेश अग्रवाल से उन के ही फ़ार्म हाऊस में हुए प्रेम फिर शादी और फिर मुकेश की आत्म हत्या प्रसंग को एक क्षणिक सुनामी मान भूल जाया जाए तो भी रेखा ने दरअसल जैसे ढेरों रद्दी फ़िल्मों में काम किया, कमोवेश उसी अनुपात में इधर-उधर मुंह भी खूब मारा.
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हम दीवाने होकर भी उनके सामने कटघरे में खड़े हैं और उन्होंने जिस्म के सौदागर को जज बना दिया है! अब ' खुदा ' जाने, क्या होगा मेरी बेजुबां मुहब्बत का कहीं सिसक सिसक के दम न तोड़ दे! या कहीं, ऐंसा न हो केस के चलते चलते बेगुनहगार-साबित होते होते मेरी मुहब्बत, माशूक बेच दी जाए किसी अमीर के हांथों खरीद ली जाए और पहुँच न जाए किसी-फ़ार्म हाऊस में फ़्लैट में या पंच सितारा होटल में!!