[31] प्रारंभ में तंतुकोशिकाएं फाइब्रिन के पार-संयोजित तंतुओं (जो शोथकारी अवस्था के खत्म होने तक अच्छी तरह से बन चुके होते हैं) का प्रयोग घाव में प्रवास करने के लिये करती हैं, और उसके बाद फाइब्रोनेक्टिन से चिपक जाती हैं.
22.
यह प्राय: बिंदुसंक्रमण से तथा बालकों द्वारा एक दूसरे की पेंसिल, लेखनी आदि वस्तुओं को मुँह में रख लेने से गले की श्लैष्मिक कला में प्रविष्ट होकर वहाँ रोग उत्पन्न कर देता है, जिसके कारण उत्पन्न हुए स्त्राव में फाइब्रिन अधिक होने से स्त्राव वहाँ पर झिल्ली के रूप में एकत्र हो जाता है।