सावजी ' फिरंग रोग ' का अर्थ नहीं जानते थे, परन्तु सन्देह करते थे कि यह रोग कैसा होता है और यह समझते थे कि है वह बहुत ही घृणित।
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पहला कारण: 90-95 प्रतिशत मामलों में फिरंग रोग होने का कारण रोगग्रस्त व्यक्ति के साथ सहवास करना ही पाया जाता है, इसीलिए इसे मुख्यतः मैथुनजन्य रोग माना जाता है।
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दूषित विष के उपद्रव स्वरूप उत्पन्न होने वाले कुष्ठ, पाचन विकार से या फिरंग रोग से उत्पन्न होने वाले कुष्ठ के अलावा भंगदर, श्लीपद, वातरक्त, नाड़ी व्रण, प्रमेह, रक्त विकार, सिर दर्द, मेदवृद्धि (मोटापा) आदि अनेक ऐसी व्याधियों को यह वटी ठीक करने में सफल सिद्ध हुई है, जिनके नाम भी आम व्यक्ति ने सुने न होंगे।
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दूषित विष के उपद्रव स्वरूप उत्पन्न होने वाले कुष्ठ, पाचन विकार से या फिरंग रोग से उत्पन्न होने वाले कुष्ठ के अलावा भंगदर, श्लीपद, वातरक्त, नाड़ी व्रण, प्रमेह, रक्त विकार, सिर दर्द, मेदवृद्धि (मोटापा) आदि अनेक ऐसी व्याधियों को यह वटी ठीक करने में सफल सिद्ध हुई है, जिनके नाम भी आम व्यक्ति ने सुने न होंगे।
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इसके अलावा ये औषधि गण्डमाला (गले की गांठे) रोग में, उपदंश विष (फिरंग रोग के कारण शरीर में फैलने वाला जहर), कान में सांय-सायं की आवाजें सी गूंजना, शरीर में बार-बार पित्त का उछलना, नाई से दाढ़ी बनवाते समय उस्तरे लगने के कारण दाढ़ी में खाज हो जाना आदि रोगों में भी ये औषधि लाभकारी असर करती है।