जैसे फलां जाती का जाग्रति सम्मेलन, आरक्षण की मांग, रोड जाम, बसे फुकना गाडियों को आग लगाना! इस तरह के सम्मेलनों में नया खून यानी हमारी नई पीढ़ी अपना शक्ति पर्दर्शन करती हैं! हजारो की भीड़ दुकानों, फैक्ट्रियो में भी आग लगा देती है!
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वफ़ा में दिल की सदके जान की नज़रे जफा कर दे, मुहब्बत में ये लाजिम है की जो कुछ हो फ़िदा करदे बहे बहरे फना में जल्द या रब लाश बिस्मिल की, की भूखी मछलियाँ है जौहरे शमशीर कातिल की, ज़रा संभल कर फुकना इसे ई दागे नाकामी बहुत से घर भी हैं आबाद इस उजडे हुए दिल से..
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सच्ची बात यह भी है कि जलेश ने कभी भी अपने साहित्य को अपनी प्रतिष्ठा का विषय नहीं बनाया, वरना दतिया की जानी या अनजानी गलियों में फुकना (गुब्बारे) फुला-फुला कर बाल गोपालों के बीच अपना मन बहलाने वाले जलेश ने साहित्य के क्षेत्र में वह योगदान दिया है कि अनेक दलित-विमर्शकों को चुल्लू भर पानी ढूंढ़ना पड़े।
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वफ़ा में दिल की सदके जान की नज़रे जफा कर दे, मुहब्बत में ये लाजिम है की जो कुछ हो फ़िदा करदे बहे बहरे फना में जल्द या रब लाश बिस्मिल की, की भूखी मछलियाँ है जौहरे शमशीर कातिल की, ज़रा संभल कर फुकना इसे ई दागे नाकामी बहुत से घर भी हैं आबाद इस उजडे हुए दिल से..
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उस बिचारी को पानी पे तिराता कौन? सभी अबोध तो अपने में गुम थे, ना बारिश से सरोकार उन्हें और ना बहते पानी से, तो बारिश में भीगता कौन और नाव चलाता कौ न........ तभी एक बच्चे के हाथ से फूटे फुकने, फुकना ; जिसे खड़ी बोली में गुब्बारा कहते हैं, से जोर की आवाज़ जो हुई तो सबकी नज़र चली गई थी उधर एक लम्हे के लि ए...
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हमारे तरफ यह निर्दयता से कहा जाता है की “ कुछ भी कर लो फुकना को चूल्हा है और खेलना तो बच्चे ही हैं ” इसमें मैं भी प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से शामिल हूँ और शर्मिंदा भी (क्यों की अभी तक कोई बदलाव नहीं कर सका) तो मेरी सहमति आपके मुद्दे से है किन्तु सानिया के बारे में नहीं क्योंकि शायद उनको अंदाज़ा हो गया होगा की ज़मीनी हालत क्या हैं खेल की वो भी टेनिस के?
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सिर पर उगे अनुशासनहीन छोटे-बडे सफेद बाल, श्याम वर्ण और पांच फुटीय वृद्ध व इकहरा शरीर जिस पर प्राचीन धरोहरों की याद दिलाते मलगुजे पैंट-शर्ट ; इन सब पर पहाड़ियों जैसी छोटी-छोटी आंखों वाला यह शख्स पहली नजर में किसी दीन-हीन याचक सा लगता है तिस पर बलराम के हल जैसा ध्वजनुमा काष्ठ-उपकरण अपने कंधे पर उठाए नगर की गंदी, पिछड़ी, दलित बस्तियों में बच्चों को ‘ फुकना ' (गुब्बारे) बेचते हुए अक्सर देखा जाता है।