अजी बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद, यह साले फ़िरंगियो की नाजायज ओलाद होगी, जो अग्रेजॊ की झुठन को ही अपना भोजन समझता है;) लानत है ऎसी मान्सिकता पर. धन्यवाद
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जान है तो जहान है जंगल में मोर नाचा किस ने देखा? जिस की लाठी उस की भैंस घर का भेदी लंका ढाये बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद.......
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बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद? अभी पहली चुस्की ही भरी थी कि फटाक से आवाज़ आई और सारे के सारे कप-प्लेट हवा में उड़ते नज़र आए, चाय बिखर चुकी थी और कप-प्लेट मानों अपने आखिरी सफ़र के कूच की तैयारी में जुटे थे।
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एक बार पता नहीं किसी बात पर मेरे एक कजन को किसी ने कह दिया कि बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद? उसने तैड़ से कहा-हां हां, बंदरों को तो अदरक का स्वाद नहीं पता पर गधों को तो पता है।
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जैसे कुत्ते की दुम टेढ़ी की टेढ़ी, ऊँट के मुँह में जीरा, कुत्ता भौंके हाथी अपनी चाल चले, भैंस के आगे बीन बजाना, धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का, बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद, आ बैल मुझे मार, छुछुन्दर के सिर में चमेली का तेल इत्यादि।
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यह भी कितनी दयनीय स्थति है कि पढ़ने वालो पर आये संकट से निपटने के लिये सहयोग की अपील हम नही पढ़ने वाले वर्ग से कर रहे है, जिनके संबंध मंे यह भी कहा जा सकता है कि बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद? जिनके हाथ में अधिकार है वे लोग इस दिशा में जब कदम उठायेगे तब उठायेगे फिलहाल तो हम चिंता करने वालो को विभिन्न अवसरो पर किताब भेंट करने की परम्परा शुरू कर देनी चाहिये ।
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गंगू भोज कहाँ तेली राजा कहाँ ((कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली) ६. रोओ दीदे अपने अन्धे के खोओ आगे (अन्धे के आगे रोओ, अपने दीदे खोओ) ७. टेढ़ा आये आँगन नाच ना (नाच ना आये आँगन टेढ़ा) ८. अदरक बंदर जाने स्वाद का क्या (बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद) ९. चढ़ा और नीम करेला (करेला और नीम चढ़ा) १ ०. होगा कर भला भला (कर भला होगा भला) उपर्युक्त प्रकार से और भी कहावतें बन सकती हैं।