उस दिन सब्जी लदी बहँगी और लगभग घुटनों तक ऊँची धोती और आसमानी रंग का कुर्ता पहने उस ' तरकारी बेचनहार ' को देखकर लगा था कि यह दृश्य शायद आखिरी बार देख रहा हूँ।
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मसलन श्रवण कुमार का अपने माता-पिता को बहँगी में बिठाकर ' तीरथ कराना ' या फिर छठ पूजा के पारंपरिक गीतों में ' काँचहि बाँस क बहंगिया बहँगी लचकत जाय ' जैसे गीत..
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मसलन श्रवण कुमार का अपने माता-पिता को बहँगी में बिठाकर ' तीरथ कराना ' या फिर छठ पूजा के पारंपरिक गीतों में ' काँचहि बाँस क बहंगिया बहँगी लचकत जाय ' जैसे गीत..
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अभी कुछ ही दिन पहले अपने कस्बे की एक बनती हुई कालोनी की अधबनी सड़क से गुजरते हुए एक आदमी को बहँगी पर सब्जी बेचते हुए देखा तो लगा कि यह एक ऐसा दॄश्य है जो गायब होता जा रहा है।
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कंधे पर लचक रही है बाँस की बहँगी अचानक याद आ गए है अखबारों में काम करने वाले दोस्त इस दृश्य को मोबाइल की आंख में कैद कर लूँ निकल कर आएगा बहुत ही अनोखा चित्र देख-देख खुश होंगे महानगर निवासी मित् र.
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इस दोनों की आँखें भी ठीक ही ठाक है, यह शताब्दी एक्सप्रेस भी, कुछ भी हो, कम से कम बहँगी तो नहीं है, फिर भी कथाकार के नाते इतनी छूट तो मैं आपसे लूँगा ही, कि मैं उस युवक को श्रवण कुमार कहता चलूँ।
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दुलकी चाल से लचक रही है बाँस की बहँगी जैसे रीतिकालीन कवियों के काव्य में लचकती पाई जाती थी नायिका की क्षीण कटि वही नायिका जो संस्कृत काव्य ग्रन्थों में तन्वी-श्यामा-शिखर-दशना भी होती थी और हिन्दी कविता का स्वर्णकाल कहे जाने वाले छायावाद के ढलान पर इलाहाबाद के पथ पर पत्थर तोड़ती पाई गई थी।
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यह मेरा अपना खुद का आकलन है-किसी समाजभाषाविद का नहीं. खै र... अब खिंचड़ी पर्व से जुड़े कुछ शब्दों की सूची बनाने का एक प्रयास-ढूँढ़ी, ढुंढा, तिलकुट, चाउर, फरुही, लावा, बतासा, आदी, बहँगी, नहान, सजाव दही, कहँतरी, अहरा, बोरसी, गोइंठा, कबिली, रहिला, लुग्गा, फींचल, कचारल, भरकल, झुराइल......