विभिन्न प्रकार की कोशिकाएँ जो प्रदाह में भाग लेती हैं, उनमें से रक्त की बहुखंडीय एवं अखंडीय श्वेतकोशिकाएँ तथा ऊतक की अखंडीय कोशिकाएँ जीवाणुभक्षण क्रिया से रोगाणुओं को निगलकर, उनकी शक्ति क्षीण करने में भाग लेती हैं।
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साथ ही साथ ये अखंडीय कोशिकाएँ उन धराशायी बहुखंडीय कोशिकाओं को भी निगल जाती हैं जो रोगाणुओं द्वारा मार डाली गई हैं और इस प्रकार प्रदाह के स्थान के स्वस्थ अवस्था में लाने का प्रयत्न निरंतर क्रियाशील रहता है।
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साथ ही साथ ये अखंडीय कोशिकाएँ उन धराशायी बहुखंडीय कोशिकाओं को भी निगल जाती हैं जो रोगाणुओं द्वारा मार डाली गई हैं और इस प्रकार प्रदाह के स्थान के स्वस्थ अवस्था में लाने का प्रयत्न निरंतर क्रियाशील रहता है।
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यदि रोगाणुओं की संख्या तथा उत्तेजक शक्ति अधिक न हुई और शरीर की प्रतिरोध शक्ति प्रचुर मात्रा में हुई, तो बहुखंडीय श्वेत कोशिकाएँ इन जीवाणुओं पर विजय की घोषणा कर उनको जीवाणुभक्षण क्रिया द्वारा निगलकर तहस नहस कर देती हैं।
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यदि रोगाणुओं की संख्या तथा उत्तेजक शक्ति अधिक न हुई और शरीर की प्रतिरोध शक्ति प्रचुर मात्रा में हुई, तो बहुखंडीय श्वेत कोशिकाएँ इन जीवाणुओं पर विजय की घोषणा कर उनको जीवाणुभक्षण क्रिया द्वारा निगलकर तहस नहस कर देती हैं।
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पाप उत्पन्नकारी रोगाणु इन कोशिकाओं को अपनी ओर अधिक मात्रा में आकर्षित करते हैं, इसलिये इस प्रकार के प्रदाहों में बहुखंडीय कोशिकाएँ ही अधिक मात्रा में आकर्षित करते हैं, इसलिये इस प्रकार के प्रदाहों में बहुखंडीय कोशिकाएँ ही अधिक मात्रा में मिलती हैं।
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पाप उत्पन्नकारी रोगाणु इन कोशिकाओं को अपनी ओर अधिक मात्रा में आकर्षित करते हैं, इसलिये इस प्रकार के प्रदाहों में बहुखंडीय कोशिकाएँ ही अधिक मात्रा में आकर्षित करते हैं, इसलिये इस प्रकार के प्रदाहों में बहुखंडीय कोशिकाएँ ही अधिक मात्रा में मिलती हैं।
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पाप उत्पन्नकारी रोगाणु इन कोशिकाओं को अपनी ओर अधिक मात्रा में आकर्षित करते हैं, इसलिये इस प्रकार के प्रदाहों में बहुखंडीय कोशिकाएँ ही अधिक मात्रा में आकर्षित करते हैं, इसलिये इस प्रकार के प्रदाहों में बहुखंडीय कोशिकाएँ ही अधिक मात्रा में मिलती हैं।
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पाप उत्पन्नकारी रोगाणु इन कोशिकाओं को अपनी ओर अधिक मात्रा में आकर्षित करते हैं, इसलिये इस प्रकार के प्रदाहों में बहुखंडीय कोशिकाएँ ही अधिक मात्रा में आकर्षित करते हैं, इसलिये इस प्रकार के प्रदाहों में बहुखंडीय कोशिकाएँ ही अधिक मात्रा में मिलती हैं।
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किताबघर प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किए जा रहे बहुखंडीय बृहद् किशोर उपन्यास ‘ गुल्लू और एक सतरंगी ' (लेखक: श्रीनिवास वत्स) के खंड-1 पर समीक्षात्मक आलेख लिखने वाले दो प्रतिभागियों को घोषित राशि 5100 /-रुपये के लिए सम्मानित किया जाना था।