अपनी स् मृतियों में ही नहीं, बल्कि वह बावलापन और बचपन आज भी मैंने अपने साथ बचाए रखा है, मेरे अपने निजी संबधों में आज भी मैं उतना ही बावला और बचपन से भरा हूं जितना मुंबई के पहले वर्ष में था.
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एक बालक देखता है दुनिया का बावलापन लोग कैसे आगे बढ़ रहे हैं इसका प्रश्न उसके जेहन में है जिसे खोजता फिरता है वह अपने आस-पास अपने को भ्रम में पाता है जैसे जैसे बडा़ होता है उसका संशय और भी बड़ा हो जाता है
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पर दो ही दिन पीछे उसका जी फिर दुखी रहने लगा, वह देवहूती का रूप जीवन देखती, उसके धन विभव की बात विचारती, और सोचती, क्या कोई दिन वह भी होगा, जिस दिन देवहूती का उजड़ा हुआ घर बसेगा? फिर सोचती, यह भी बावलापन है!
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मैं बोल्या-यार खुशदीप, तू मेरे से क्युं दुश्मनी निकालण लागरया सै भाई? ताऊ नै तेरा के बिगाड राख्या सै? मेरे पीछे वैसे ही भतेरे कूंगर लागरे सैं. तेरे आगे दो जोडे हाथ... मन्नै माफ़ कर यार. खुशदीप बोल्या-अरे ताऊ..तैं समझता कोनी..तेरा के बिगड ज्येगा? नू बता कि मूसल का मेह (बरसात) म्ह के भीजेगा? बावलापन मतन्या करै.
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नींदों के दरवाज़े खोल के नींदों के दरवाज़े तेरा यूं ख्वाबों में आना तडके मेरी उम्मीदों को बेदर्दी से झ्थ्ला जाना हो पाए तो इक दिन मेरी याद तसव्वुर में लाना बेसब्री रोमानी शब् से एक हसीं धोखा खाना फिर ख्वाहिश की देह्लीजों पर कोई शोर नहीं होगा अलसाई पलकों के पीछे कोई और नहीं होगा लफ़्ज़ों में बेहद मुश्किल है चुभती टीस समझ पाना यारों निरा बावलापन है उलझी धड़कन सुलझाना
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प्रतीत होता है कि सूफी सोच समस्त दर्शन शास्त्रों से ऊपर उठ कर है | एक अजीब सा बावलापन जो स्वयं को सत्-चित्-आनंद में विलीन कर दे | बाकी सब प्रपंच हैं | हिन्दू पंथ का भक्तिमार्ग भी कदाचित इस सूफी अहसास के करीब पहुंचा हो परन्तु निराकार में समा जाने विलीन हो जाने की चाह में कुछ अलग ही बात है | अब तो न ऐसी अलौकिक मस्ती में सने संत दीख पड़ते हैं न सही अर्थों में जियारत ही हो पाती है | कहीं तो कोई मजार मिले जहां जियारत हो |
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वैसे भी खिड़की पर खाली बैठे हुए वह बाहर के उचाट खालीपन को घूर रहे थे, निबंध का शीर्षक देखकर एकदम से उनका पारा चढ़ गया, भागकर चूल्हे की ज़रा सुलगती लकड़ी जो वह अपनी सिगरेट जलाने के लिए लेकर आये थे, पैंट की फटी जेब और रसोई की मेज़ पर पिछले हफ्ते के तहाये अख़बार कहीं भी जिसके न मिलने पर पिता का बावलापन उनकी नाक तक चढ़ आया, गुस्से में लकड़ी वापस चूल्हे में फेंकने की बजाय मेरा खाता खींचकर, निबंध के शीर्षक के नीचे अंडे की गंदी तस्वीर खींच, खाते को उन्होंने हवा में उछाल दिया.