यद्यपि सोवियत नीति के प्रचार के संबंध में इन लोगों ने युक्ति-बल के ऊपर भी बाहु-बल को खड़ा कर रखा है, फिर भी युक्ति को बिलकुल छोड़ा नहीं है और धर्म-मूढ़ता और समाज-प्रथा की अंधता से सर्वसाधारण के हृदय-मन को मुक्त रखने के लिए प्रबल उद्यम किया है।
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सुरक्षा की बातें हो गई है बेमानी, वह जमाना था जब मर्द के बाहु-बल से होता था शिकार, होती थी खेतियाँ, हुआ आविष्कार जब से पहिये का बाहु-बल की जगह ले ली थी यांत्रिक शक्ति ने और मर्द बेचारा हो गया था एक फालतू सी वस्तु इस सन्दर्भ में....
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सुरक्षा की बातें हो गई है बेमानी, वह जमाना था जब मर्द के बाहु-बल से होता था शिकार, होती थी खेतियाँ, हुआ आविष्कार जब से पहिये का बाहु-बल की जगह ले ली थी यांत्रिक शक्ति ने और मर्द बेचारा हो गया था एक फालतू सी वस्तु इस सन्दर्भ में....
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भारत के रण क्षेत्र में शिकारियों की भीड़, पत्रकार चंदन घीसें, तिलक देते गांधीवीर ये प्रश्न अच्छा है राहुल जी को नकारात्मक किंतु भारी प्रचार मिलेगा.काफ़ी चिंतन मनन और गहन विचार के बाद कुछ लिख गया है.यदि कोई सर्वक्षण करे को स्पष्ट हो जाएगा कि 80 प्रतिशत वोट विजेता के ख़िलाफ़ भी डाले जाएं फिर भी धन-बल, छल-बल, बाहु-बल के आधार पर चालू लोग चुनाव जीत सकते हैं और किसी भी कुर्सी पर बैठ सकते हैं.