शब्दों के नर्तन से शापित अंतर्मन शिथिलाया लिखने को तो बहुत लिखा पर कुछ लिखना बाकी है रुग्ण बाग में पंछी घायल रक्त वमन जब बहता विभत्स में शृंगार रसों की लुकाछिपी खेलाई विद्रोही दिल रोता रहता दर्द बहुत ही सहता फिर भी लफ्जों को निचोड़ कर बदबू ही फैलाई खाद समझ नाले से मैंने कीचड़ तो बिखराया किन्तु हाय! गन्ध फूलों की बिखराना बाकी है।
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लिखना बाकी है शब्दों के नर्तन से शापित अंतर्मन शिथिलाया लिखने को तो बहुत लिखा पर कुछ लिखना बाकी है रुग्ण बाग में पंछी घायल रक्त वमन जब बहता विभत्स में शृंगार रसों की लुकाछिपी खेलाई विद्रोही दिल रोता रहता दर्द बहुत ही सहता फिर भी लफ्जों को निचोड़ कर बदबू ही फैलाई खाद समझ नाले से मैंने कीचड़ तो बिखराया किन्तु हाय! गन्ध फूलों की बिखराना बाकी है।
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खिड़की से अचानक बारिश आई एक तेज़ बौछार ने मुझे बीच नींद से जगाया दरवाज़े खटखटाए ख़ाली बर्तनों को बजाया उसके फुर्तील्रे क़दम पूरे घर में फैल गए वह काँपते हुए घर की नींव में धँसना चाहती थी पुरानी तस्वीरों टूटे हुए छातों और बक्सों के भीतर पहुँचना चाहती थी तहाए हुए कपड़ों को बिखराना चाहती थी वह मेरे बचपन में बरसना चाहती थी मुझे तरबतर करना चाहती थी स्कूल जानेवाले रास्ते पर