नए सेशन में नर्सरी के बच्चों का हाल बुरा होता है, नए माहौल में एडजस्ट होने में उन्हें समय लगता है और तब तक उनकी चीख-पुकार, रोना धोना, बैग और खाना बिखेर देना जैसे कार्यक्रम चलते रहते हैं...
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रात भर कान फोड़ू संगीत बजाना, ट्रेफिक की ऐसी तैसी कर देना, सवेरे बचे-खुचे भोजन और थर्मोकोल / प्लास्टिक के इस्तेमाल हुये प्लेट-गिलास-चम्मच सड़क पर बिखेर देना, जयमाल के लिये लगे तख्त-स्टेज-टेण्ट को अगले दिन दोपहर तक खरामा-खरामा समेटना …..
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अंतिम दो कविताओं में बनारस की यात्रा और वहाँ के अनुभवों को यूँ जी कर शब्दों में में बिखेर देना जैसे “ बादल से चले आते हैं मज़मून मेरे आगे ” और स्त्री मनःस्थिति को स्वर देना वह भी पुरुष के पौरुष को यूँ उदारता से दुखाते हुए...
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यहाँ तंत्र साधना की किन्हीं विधियों को बताने का हमारा कोई इरादा नहीं है, क्योंकि उन गुप्त रहस्यों को जन-साधारण के लिए प्रकाशित कर देने का अर्थ है-बालकों के क्रीड़ा-स्थल में बारूद बिखेर देना, जिसमें से विचारे क्रीड़ा-कौतुक करने के उपलक्ष में सर्वनाश का उपहार प्राप्त करें ।
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अव्यवस्था का दूसरा नाम है-असंयम | अनुशासनहीनता और उच्छन्र्ख्लता भी इसी को कहते हैं | यही कभी अराजकता जैसी दुर्गन्ध और दूरगामी दुष्परिणाम उत्पन्न कराती देखी गई है | असंयम का सवरूप होता है-उपलब्ध उपयोगी वस्तुओं को निरर्थक या हानिकर प्रयोजनों में बिखेर देना | इसे स्वेच्छापूर्वक लुटेरों का शिकार होने जैसीमूर्खता भी कहा जा सकता है |
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वह जी लेना चाहती है, वे क्षण एक बार फिर एक बार फिर सहलाना चाहती है उस सुन् दर मुख को सँवरे बालों को खेल-खेल में बिखेर देना चाहती है लज् जा से बचने के लिए भी उन आँखों को चूम लेना चाहती है जो उसे देखते हुए झपकना भी भूल जाती हैं एक बार वह दौड़कर उन बाहों में समा जाना चाहती है बाँध लेना चाहती है उस गठीली देह को आलिंगन में …
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सर्वप्रथम हमारे उपनिषदों, पुराणों और अन्य सब शास्त्रों में जो अपूर्व सत्य निहित है, उन्हें इन सब ग्रंथों के पृष्ठों के बाहर लाकर, मठोें की चहारदीवारियां भेदकर, वनों की नीरवता से दूर लाकर, कुछ संप्रदाय-विशेषों के हाथों से छीनकर देश में सर्वत्र बिखेर देना होगा, ताकि ये सत्य दावानल के समान सारे देश को चारों ओर से लपेट लें-उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक सब जगह फैल जाए-हिमालय से कन्याकुमारी और सिंधु से ब्रह्मपुत्र तक सर्वत्र वे धधक उठें।