जनता को लूभाने के नाम पर जब सलमान खान जैसे स्टार बुलाए जाते हैं तो आम जनता के हिस्से में आती हैं पुलिस की लाठियां और सलमान खान को गोद में बिठाने का काम वीआईपी करते हैं।
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वोट पक्के करने की जुगत बिठाने का काम तेज़ी पर है लेकिन अति वंचितों का भला किये जाने की घोषणाएं और वायदे (भले ही रिझाने के झूठ और फ़रेब के बतौर ही सही) कहीं नहीं हैं।
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इसके बाद पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और आरएसएस के नेताओं के बीच बैठकों का दौर चलता रहा और वेंकैया नायडू तथा सुषमा स्वराज सहित कई वरिष्ठ नेता संघ और पार्टी के बीच तालमेल बिठाने का काम करते रहे.
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मैं समझता हूं कि जब यूपीए सरकार बनी थी तब लोगों ने बहुत आशा की थी, निश्चित तौर पर एनडीए, पूर्ववर्ती सरकार को लोगों ने रिजेक्ट किया था और हमें सत्ता में बिठाने का काम भरोसे के साथ किया था।
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लेकिन जेटली और भाजपा के उठाए दूसरे मुद्दे से हम सहमत हैं कि जजों को रिटायरमेंट के बाद किसी ऐसी कुर्सी पर बिठाने का काम सरकारों के हाथों में नहीं होना चाहिए, जहां बैठकर वे अपने को बनाने वाली सरकारों के साथ रियायत कर सकें।
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इसे इन दो ध्रुवांतों के बीच की नाजु़क जगहों को पाटने के साथ-साथ, निरंतर विकसित हो रहे भारत के मध्य वर्ग के जेहन में संस्-ति को संस्कार, सुरक्षा कवच, जीवित बचे रहने के लिए हमारा अपना ही एक विशिष्ट उपकरण के रूप में बिठाने का काम करना होगा.
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देखना है कि बेनी वर्मा के दबाव में पीएमओ एक दागी अफसर के हवाले एनएमडीसी कर देता है ताकि इस भरपूर निचोड़ा-लूटा जा सके या फिर सीएमडी जैसे पद पर ईमानदार और योग्य अफसर को बिठाने का काम करता है ताकि जनता के पैसे की लूट को रोका जा सके.
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इसे इन दो ध्रुवांतों के बीच की नाजु़क जगहों को पाटने के साथ-साथ, निरंतर विकसित हो रहे भारत के मध्य वर्ग के जेहन में संस्-ति को संस्कार, सुरक्षा कवच, जीवित बचे रहने के लिए हमारा अपना ही एक विशिष्ट उपकरण के रूप में बिठाने का काम करना होगा.
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लेकिन बड़ा सवाल यह है कि धर्म संसद में देश के प्रधानमंत्री पद के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को पेश करने के जो कयास लगाए जा रहे हैं, वाकई वह धर्म और राजनीति को जोड़ पाने में सफल होंगे? जिस धर्म और राजनीति के बीच तालमेल बिठाने का काम साबरमती के संत (महात्मा गांधी) पूरा नहीं कर पाए, क्या नरेंद्र मोदी उस संत के अधूरे कार्य को पूरा कर पाएंगे।
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एक नजर में तो यह उस शहीद के अपने ही किसी नजदीकी की करतूत लगती है, क्योंकि किसी बाहर के अनजान कमीने को क्या मालूम कि शहीद के मौत का मुआवजा उसके परिवार वालों ने ऍफ़ डी करवाया या नहीं? और एक अनजान व्यक्ति के साथ शहीद की विधवा को उसकी मोटरसाइकिल में बिठाने का काम तो कोई निहायत बेवकूफ इंसान ही कर सकता है, वह भी इस आज के कमीनो से भरी इस दुनिया में।