जब किसी कविता संग्रह की तीन सौ प्रतियों का एडिशन पाँच सालों में पूरा नहीं बिकता हो तब किसी कवि का लगातार रचते रहना, उसका बीमार हो जाना या यकायक चले जाना इस समाज के लिए क्या मायने रखता है, ऐसे समय में जब कविता समाज की चिंता करती हुई हरदम उससे मुखातिब और रूबरू है और समाज उसकी तरफ से पीठ किए बैठा हो तब कवि की मृत्यु को इस समाज में किस तरह लिया जा रहा होगा इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है।