वह अपने कमरे में, बुध् दू बक् से से उलझा रहता है या फिर ' आर्कुट ' पर, अपने उन दोस् तों से सम् पर्क किए रहता है जो गांव के गांव में ही हैं ।
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बहस का कोई अंत नहीं और नाहीं कोई पर िणाम निकलता है, लेकिन पत्रकारों, बुध् दीजीवि यों और सा ह ित् यकारों ने मि लकर इस देश को बहस का एक अदद मंच बनाकर रख दिया है।