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बुभुक्षित उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
21.यदि आत्मा को मलिन, बुभुक्षित और दुर्बल नहीं रखना है, तो स्वाध्याय का साधन हमें अनिवार्य रूप से जुटाना होगा।

22.पद्दलित, तिरस्कृत-उपेक्षित एवं बुभुक्षित मानवता के प्रति प्रेमचंद की सहानुभूति ने बुधिया की मुत्यु को और भी अधिक जीवत् बना दिया है ।

23.बुभुक्षित व शोषित युगों ने नवल आश-करवट बदलकर बड़ी साँस लम्बी भरी जो कि भय से उसी क्षण सुदृढ़ देश साम्राज्यवादी सहम कर मरण के क़दम पर गिरे, और खोये समय की सबल धार में!

24.“मेरी बात सुनकर स्वामी जी गंभीर हो गए, कुछ सोचते रहे, फिर बोले की पारद को बुभुक्षित करने जो तांत्रिक क्रिया है, उससे तो इतना सोना बन सकता है की-स्सोने की लंका ही बन जाए.

25.वैसे भी जो लोग दूकान से पारद के विग्रह खरीद कर स्थापित करते हैं उन्हें कोई अनुकूलता इसी लिए नही मिलती क्यूंकि जब पारद अष्ट संस्कार के बाद बुभुक्षित होता है तो उसे भोजन देना अनिवार्य है, आप ख़ुद ही सोचिये की जो ख़ुद भूखा हो वो आप को तृप्ति कैसे दे सकता है.

26.कृष्ण ने वह शाक-पत्र छुटाया और मुख में डाल लिया ' इसी से परितप्ति हो बुभुक्षित की! ' सब चकित. पाँचाली जैसे आसमान से गिरी. ' यह क्या किया तुमने. वह जूठा शाक क्यों खाया? ' ' सखी, भूख ऐसी ही होती है, सुच्चा-जूठा कुछ नहीं देखती.

27.कौतुक से चमकती आँखों वाला हमारा छोटा बच्चा जिसे हम छोड़ आये थे कंधे पर बोरे का बुभुक्षित झोला लटकाये बचपन-वंचित उन बच्चों से तनिक दूर जो किसी के बच्चे नहीं हैं दिनभर बीनते कुछ-न-कुछ कूड़े-कचरे के ढेरों में ताकते सूनी-सूखी आँखों से तमाशा जब हम चिल्लाते गुजरे थे बलिदानी-अभिमानी टोलियों में रामलला हम आयेंगे रामलला हम आयेंगे मंदिर वहीं बनायेंगे ….

28.किं बहुना, एक दिन उस वीर सेनापति राव तुलाराम के स्वतन्त्रता शंख फूंकने पर अहीरवाल की अन्धकारावृत झोंपड़ियों में पड़े बुभुक्षित नरकंकालों से लेकर रामपुरा (रेवाड़ी) के गगनचुम्बी राजप्रसादों की उत्तुंग अट्टालिकाओं में विश्राम करने वाले राजवंशियों तक ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध किये जा रहे स्वातन्त्र्य आन्दोलन में अपनी तलवार के भीषण वार दिखाकर क्रियात्मक भाग लिया था ।

29.इस प्रकार मजबूर किये गये, सताये गये, बुभुक्षित, सन्त्रस्त, दु: खी, उत्तेजित, आपत्तिग्रस्तों, अज्ञानी बालक, रोगी अथवा पागल कोई अनुचित कार्य कर बैठते हैं तो वह क्षम्य माने जाते हैं ; कारण यह है कि उस मनोभूमि का मनुष्य धर्म और कर्तव्य के दृष्टिकोण से किसी बात पर ठीक विचार करने में समर्थ नहीं होता।

30.जब आज दानव कर रहा शोषण भयंकर रूप मानव का बनाये, और उठती जा रही है स्नेह, ममता की मनुज-उर-भावनाएँ, बढ़ रही हैं तीव्र गति से श्वास पर हर चिर बुभुक्षित मानवों के दग्ध-जीवन की विषैली गैस-सी घातक कराहें! ध्वंस का निर्मम मरण का, घोर काला यातना का चित्रा यह म्रियमाण है! उजड़ा हुआ है अन्दमन-सा! सिहरता तीखा मरण का गान है! आदर्श सारे गिर रहे; मानव बुझा कर ज्ञान का दीपक निविड़तम-बद्ध दुनिया देखना बस चाहता है;

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