देना चाहिए... खोने नहीं देना चाहिए....[पीछे वंदना गुप्ता जी.....][यह अपना स्टायल है... ऐज़ पर अजय झा..][यहाँ भी...][यह शाहनवाज़ हैं... प्रेमरस वाले... फिलहाल थकान से बेरस हैं..
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मगर फिर अपराध-सनसनी की घटनाओं, याकि रिश्तों की हत्या, अपराध, बलात्कार और समाज के टूटने की विद्रूपताओं का ऐसा सैलाब आया कि मनोहर कहानियां बेरस हुई।
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? थापड़ हँस रहा था-घर जाओ तो वही एक उदास पत्नी, मैले कपड़ों की गठरी में सूखे होंठ वाले बेरस बच्चे-मुझे नहीं डरना चाहिए अरशद पाशा...
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अचार खाने से बचना भी इसका एक निदान है परंतु ऐसे इंसान ने अचार खाना छोड़ दिया फिर तो वो जीभ के चटकारे कैसे ले पाएगा, रसना का बेरस होना एक भला इंसान सह नहीं सकता।
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रंगीली तितली भी लगती है अब बेरंग मन न भावे मेरा जब ना हो तू संग शहद भी चकूँ, तो लगता है वह बेरस कुछ ना चाहूं, मिल जाए मुझे तू बस मीठी जामुन भी लगती अब करेला क्यों?
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जो हम तक कई तरगों की तरह आती है और उसके संवाद हमें अपने अर्थों से जोड़ लेते हैं. हो सकता है कि कुछ लोग इसे मजे के लिए देखें पर मेरा मानना है कि इसके निर्माता जॉन अब्राहम और लेखिका जूही चतुर्वेदी को बधाई दी जानी चाहिए कि उन्होंने एक बेरस विषय को फिल्म के कैनवास पर उकेरने का साहस किया.
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एक बात कहना चाहूंगी कि जब से ब्लॉग जगत से परिचय हुआ और आपलोगों का लिखा पढने का सौभाग्य मिला, इस बेरस के तकनीकी दुनिया से जुड़े होने का अफ़सोस जाता रहा, बल्कि यह लग रहा है कि यदि आई टी फिल्ड से न जुड़ी होती तो कदाचित यह सब देखने पढने कसुअवासर ही न मिलता और मैं इस सुंदर दुनिया से अछूती अनजान रह जाती..
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अंडमान समुद्र के दक्षिण और स्ट्रेट्स ऑफ मलक्का के उत्तर तथा मलेशिया और थाईलैण्ड की सीमा के बीच यह लंकावी द्वीप स्थित है | इस द्वीप के उत्तर में कुछ ही कि. मी. की दूरी पर थाई द्वीप कोटा रूटवा स्थित है | वैसे कुल मिलाकर द्वीपों की संख्या 104 है जिनमें दो पुलाव दयांग बंटिंग और पुलाव बेरस बसा काफी बड़े द्वीप हैं और सब छोटे-छोटे | इसमें एक मलेशिया का स्वच्छ जल का जलाशय भी है |
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आपके सहृदयता और विनम्रता से मैं अभिभूत हुई. एक साधारण सी टिपण्णी को जो आपलोगों ने मान दिया अब क्या कहूँ.एक बात कहना चाहूंगी कि जब से ब्लॉग जगत से परिचय हुआ और आपलोगों का लिखा पढने का सौभाग्य मिला,इस बेरस के तकनीकी दुनिया से जुड़े होने का अफ़सोस जाता रहा,बल्कि यह लग रहा है कि यदि आई टी फिल्ड से न जुड़ी होती तो कदाचित यह सब देखने पढने कसुअवासर ही न मिलता और मैं इस सुंदर दुनिया से अछूती अनजान रह जाती..
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रस दे रही हैं रचनायें गीतिकाएं हों कि कविताएं तुक के साथ हों या कि हों बेतुकी रसदार हों या बेरस पर रचना कोई नीरस नहीं होती रचना जीवन में रस भरती है रंग भरती है तरंग भरती है आलोडि़त कर देती है मन को वही व् यथित भी करती है जब करे वेद को व् यथित तो घाव महत् वपूर्ण हो जाता है किसी के होने से ही उसका निदान किया जा सकता है इसलिए होनी जरूरी है और जरूरी है अनहोनी भी।