' आदमी अध्यवसायी था' 'आदमी अध्यवसायी था' अगर इतने ही की जयंती मनाकर सी दी गई उसकी दृष्टि उसके ही स्वप्न की जडों से न उगने पाईं उसकी कोशिशें बेलोच पथरों के मुकाबले कट कर रह गए उसके हाथ तो कौन संस्कार देगा उन सारे औजारों को जो पत्थरों से ज्यादा उसको तराशते रहे.'
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' आदमी अध्यवसायी था ' अगर इतने ही की जयंती मनाकर सी दी गई उसकी दृष्टि उसके ही स्वप्न की जडों से न उगने पाईं उसकी कोशिशें बेलोच पथरों के मुकाबले कट कर रह गए उसके हाथ तो कौन संस्कार देगा उन सारे औजारों को जो पत्थरों से ज्यादा उसको तराशते रहे. ' (कुँवर नारायण)