करीब 24 वर्ष पहले बॉल बॉय बने सचिन ने तब से अब तक ऐसा अविस्मरणीय सफर तय किया है जो हर क्रिकेटर के लिए प्रेरणास्रोत है।
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तेंदुलकर ने अतीत की स्मृतियों का पिटारा खोलते हुए कहा कि मुझे याद है कि विश्वकप-1987 में मैं एक बॉल बॉय के रूप में शामिल हुआ था।
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12 वर्षीय बॉल बॉय के रूप में उन्होंने फ़र्स्ट डिविज़न खेलों के मध्यकाल विराम के दौरान गेंद के साथ अपनी जादुई प्रतिभा दिखा कर दर्शकों को खुश करते थे.
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12 वर्षीय बॉल बॉय के रूप में उन्होंने फ़र्स्ट डिविज़न खेलों के मध्यकाल विराम के दौरान गेंद के साथ अपनी जादुई प्रतिभा दिखा कर दर्शकों को खुश करते थे. [7]
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अर्जुन को बॉल बॉय का कार्ड टेस्ट मैच के पहले दिन से ही मिल गया था लेकिन मैच के पहले दिन वह ज्यादातर अपने परिवार के साथ स्पेशल बॉक्स में ही रहे।
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बॉल बॉय या गर्ल (Ball boy/girl) वह लड़का या लड़की जो जाल के किनारे या किसी कोने में रहता है और दौड़ दौड़ कर गेंद इकठ्ठा करके खिलाड़ी को देता है.
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उस घटना के लगभग 26 साल के बाद सचिन जब उसी मैदान पर अपना दो सौवां और आखिरी टेस्ट मैच खेल रहे हैं, तो उनका बेटा अर्जुन बॉल बॉय की भूमिका में है।
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बॉल बॉय या गर्ल (Ball boy / girl) वह लड़का या लड़की जो जाल के किनारे या किसी कोने में रहता है और दौड़ दौड़ कर गेंद इकठ्ठा करके खिलाड़ी को देता है।
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रिकॉर्डों के इस बेताज बादशाह को भले ही आज क्रिकेट का भगवान कहा जाता हो लेकिन एक समय ऐसा भी था जब वह 1987 के विश्वकप में भारत के एक मैच में बॉल बॉय बने थे।
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संयोग की बात है कि सचिन ने जब बॉल बॉय की भूमिका निभाई थी तब वह 14 साल के थे और आज उनका बेटा भी 14 साल की उम्र में ही बॉल बॉय की भूमिका निभा रहा है।