सिंह आमतौर पर चयनात्मक रूप से मानव का शिकार नहीं करते हैं, फिर भी कुछ सिंहों को नर-भक्षी बनते हुए देखा गया है, जो मानव शिकार का भक्षण करना चाहते हैं।
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यों विचार करके शिवस्वामी ने प्रेतों से पूछा, ” तुम लोग अगर मेरा भक्षण करना चाहो तो कर लो, अन्यथा मुझे छोड़ दो, तो मैं अपने रास्ते चला जाऊंगा।
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मैंने संस्कृत से स्नातक (शास्त्री) किया हुआ है और ज्यादातर पुस्तक पढ चुका हूँ लेकिन मुझे अभी तक ऐसी गलत बात नहीं मिली जिस में ऐसा कुछ लिखा हो कि मांस भक्षण करना चाहिए।
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एक भाव से प्रभु विचारते हैं मुझमे तो सिर्फ़ सतगुण का ही बसेरा है और यहाँ धरा पर कुछ रजोगुण कर्म भी करना होगा इसलिये कुछ रज का भी भक्षण करना होगा संस्कृत मे पृथ्वी का नाम
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अबे ये कोई आदम ज़माना है की शिकार कर के जानवरों का मांस भक्षण करना ही पडेगा, इश्वर की बनायी इस दुनिया में खाने की चीजों की कोई कमी है क्या जो लोग ये सूअर, गाय, भैंस, कीडे मकोडे खाने पर तुले हुए हैं.
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यह कर्म से कही बढ़कर अपने ही संतान से दुष्कर्म और अपने परिवार जन का ही भक्षण करना जिंदा काटना, जिंदा ज़लाना इसका खेल है मानव मांस भी खाने को आतुर था, चोरी भी ऐसी की जिसकी लाठी उसकी भैस... ये रावण का मित्र है.....
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जोधपुर से श्रीधाम वृंदावन में आये संत शास्त्री ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि प्रभु के आंगन में अनेक गौशालाएं होने के बावजूद गो वंश का अखाद्य का भक्षण करना और अवारा की तरह मारी-मारी घूमना, तिरस्कार ङोलने को मजबूर होना संत-भक्त एवं सरकार में बैठे लोगों को धिक्कारने का आह्वान करता है।
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अरे यदि तुम एक के वस्त्र उतार उसे हीनता का बोध कराना चाहते थे, पुरुष की निगाहों से उसका भक्षण करना चाहते थे तो क्या केवल द्रोपदी पर नजरें टिका सकते जब कुन्ती व गान्धारी व सब हस्तिनापुरवासिनें अपने वस्त्र त्याग देतीं? जिस कायरता पर कटाक्ष कर रही हैं उस कायरता की कविता हवा में नहीं लिखी गई है ।