खास बात यह कि किरण बेदी की कचहरी में कोई वकील नहीं होता, सोचिए कि अगर दोनों पक्ष बिना वकील के अदालत के सामने खड़े हों, तो किसी भी जज के लिए सच को भाँपना और फैसला सुनाना क्या ज्यादा आसान नहीं हो जाए? किरण बेदी की कचहरी से एक रास्ता दिखाई देता है, जो सुलह, शांति और सच्चे इंसाफ का रास्ता है।
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करण में छत्र जितना भी छलावा लिख रहे आज तो स्पष्ट सारे शब्द उसके दिख रहे श्वेत वस्त्रों की तलहटी में छुपी है धूर्तता हर फटे में झाँकती दिखती तुम्हारी मूर्खता अब नहीं होगा असंभव मन तुम्हारा भाँपना आज तक तो आपनें बंदर नचाये हैं और उनकी ओट में बंगले बनाये हैं अब समय है आपको बंदर नचाएँगे हाँककर दौड़ाएँगे मारें भगाएँगे वन प्रांतरों में आपको करनी पड़ेगी साधना बेशरम की पौध से अब भी खड़े हो तीर पर बगुले भगत क्यों द्दष्टि अब तक मछलियों पर नीर पर?