इसका नामकरण 16वीं सदी के मानव शास्त्री जॉर्ज हैरियट और 18वीं सदी में भाप का इंजन बनाने वाले इंजीनियर जेम्स वॉट के नाम पर हैरियट वॉट यूनिवर्सिटी किया गया है।
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जेम्सवाट ने भाप का इंजन बनाया तो सबसे पहले उसका उपयोग कोयला खानों से पानी निकालने के लिए किया गया, जिससे हर साल सैकड़ों मजदूरों की जान जाती थी.
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भाप का इंजन भी बेक गेअर वाला होता था, पर ड्राईवर बेक इंजन चलने पर मीटर वगेरह गर्दन घुमा कर देखते थे, इस लिए इसे गोल चक्र पर घुमा के सीधा कर दिया जाता था.
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आप अपने को मरा हुआ मत दिखाओ, नहीं तो यह संसार क्षण मात्र में हमे फूंक आयेंगे और तब क्षत्रिय केवल “ भाप का इंजन ” बनकर रह जायेगा, जो केवल इतिहास की वस्तु मात्र है!
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आप अपने को मरा हुआ मत दिखाओ, नहीं तो यह संसार क्षण मात्र में हमे फूंक आयेंगे और तब क्षत्रिय केवल “ भाप का इंजन ” बनकर रह जायेगा, जो केवल इतिहास की वस्तु मात्र है!
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(एक बार जानकारी लेने रेल्वे स्टेशन भी गया था, पर कुछ अधिक जानकारी नहीं मिली) छुक-छुक करता भाप का इंजन जब रायपुर से धमतरी और राजिम की ओर दौड़ा होगा तो लोगों ने कौतुहल भरी निगाहों से देखा होगा।