सच्चाई यह है कि जब कर्त्ता वाक्य का अपरिहार्य अंग हो अर्थात् उसके बिना वाक्य अधूरा लगे तो कथन-प्रकार कर्तृवाच्य होगा, जब कर्त्ता के बिना अथवा कर्त्ता के सक्रिय सहयोग के बिना कर्म अपने बल-बूते पर वाक्य को पूर्णता प्रदान करने में सक्षम होता है तो कथन प्रकार कर्मवाच्य होता है और जब क्रिया बिना कर्त्ता के या बिना कर्त्ता के सक्रिय सहयोग के वाक्य को अपने बल पर पूर्णता प्रदान करती है तो कथन-प्रकार भाववाच्य होता है।