नेपाल आ भारतक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली १. १. नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक उच्च
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↑ एक भाषा विद्वान के अनुसार, शुद्ध भाषा-वैज्ञानिक दृष्टि से हिंदी की दो मुख्य उपभाषाएँ हैं-पश्चिमी हिंदी व पूर्वी हिंदी।
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इस शब्द को भाषा के मायने जोड़ने का प्रथम प्रयास अंग्रेज भाषा-वैज्ञानिक सर जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन द्वारा देखा जाता है।
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प्रब्रजन की अवधि शताब्दियों में फैली होने तथा अन्य कारणों से विभिन्न समूह स्वाभाविक रुप से भाषा-वैज्ञानिक भिन्नता लिये हुए थे।
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यद्यपि ग्रियर्सन के इस विभाजनमें कोई समान भाषा-वैज्ञानिक मानदण्ड नहीं अपनाया गया है फिर भी बोली-भेदकी ओर ठीक ढंग से लक्षित किया गया है.
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भाषा-वैज्ञानिक आधार भी इसकी पुष्टि करते हैं कि उत्तरभारत की देशभाषाएं अवधी / ब्रजी / भोजपुरी / मैथिली / छत्तीसगढी… आदि भाषाएं हैं, न कि बोलियां।
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ब्रज भाषा और खड़ी बोली का तुलनात्मक भाषा-वैज्ञानिक अध्ययन इस रूप में अभी तक प्रस्तुत नहीं हुआ था ।” डॉ. ए.सी. सिन्हा की अप्रकाशित पी.एच.डी. थीसिस
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भाषा-वैज्ञानिक आधार भी इसकी पुष्टि करते हैं कि उत्तरभारत की देशभाषाएं अवधी / ब्रजी / भोजपुरी / मैथिली / छत्तीसगढी … आदि भाषाएं हैं, न कि बोलियां।
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यहां हम यह ऐतिहासिक तथा भाषा-वैज्ञानिक तथ्य याद दिलाना चाहते हैं कि दुनिया भर में भाषाओं के विकास का मुख्य आधार भाषा के बोले गए नहीं, बल्कि लिखित-रूप होता है।
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अंग्रेज़ी की पिटमैन शॉर्टहैन्ड की कमियों का उल्लेख करते हुए विशिष्ट पद्धति के निर्माण के ठोस भाषा-वैज्ञानिक आधार प्रस्तुत करते हुए आशुलेखन संबंधी सभी समस्याओं का समाधान इसमें किया गया है।