भाषा-शिक्षण में पाठ-नियोजन का आवश्यकता निम्नलिखित कारणोंसे स्पष्ट है--(१) शिक्षण की प्रक्रिया को क्रमबद्ध एवं सुव्यवस्थित रुपसे गतिशील करने के लिए पाठ-नियोजन आवश्यक है.
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व्यतिरेकी भाषा-विज्ञान, उसके आधार, अन्य भाषा-शिक्षण में उसकी उप-~ योगिता औरउसकी आलोचना पर आगे के अध्यायों में क्रमशः विस्तार से विचार किया जा रहा है.
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व्यतिरेकी भाषाविज्ञान (Contrastive linguistics) भाषा-शिक्षण का व्यवहारिक तरीका है जो किसी भाषा-युग्म के समानताओं एवं अन्तरों का वर्णन करके भाषा को सुगम बनाने पर जोर देता है।
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वृतान्त, वाराणसी, व्याख्यान, शिक्षा विभाग, संपादक, सुमित्रानंदन पंत, सेवाकालीन प्रशिक्षण, स्नातकोत्तर शिक्षक, हिन्दी विभाग, हिन्दी भाषा-शिक्षण की चुनौतियाँ,
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एक अन्य कार्यक्रम वर्ड चैम्प (WORDChamp) की भी चर्चा की जा सकती है, जो वेब से हिंदी भाषा-शिक्षण का अच्छा आधार प्रस्तुत करता है (परिशिष्ट-3).
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आगामी युग की चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए विद्यार्थियों को हिन्दी भाषा-शिक्षण में भाषा और पाठेतर साधन दोनों के माध्यम से ज्ञान का विस्तार करके ही इस चुनौती को स्वीकार करना है।
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साथ ही हमें भाषा-शिक्षण की नवीन प्रणालियों से अवगत कराया जा रहा है ताकि प्राथमिक स्तर के शिक्षक अपनी कक्षा को रूचिकर बना सकें एवं छात्रों का ध्यान आकृष् ट करने में सफल हों ।
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इन यात्राओं की सबसे अविस्मरणीय बात यह रही कि उस दौरान शायद ही कोई लम्हा बीता हो जो उनसे अंग्रेजी व मलयालम साहित्य, भाषा-शिक्षण, और सबसे बढ़कर मानवीयता का पाठ न मिला हो ।
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विद्यालय संगठन, डॉ. प्रभाकर सिंह, बनारस, बीएचयू, यात्रा-वृतान्त, वाराणसी, व्याख्यान, शिक्षा विभाग, साहित्य, सेवाकालीन प्रशिक्षण, स्नातकोत्तर शिक्षक, स्नातकोत्तर शिक्षक हिन्दी, हिन्दी विभाग, हिन्दी भाषा-शिक्षण की चुनौतियाँ,
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की भी चर्चा की जा सकती है, जो वेब से हिंदी भाषा-शिक्षण का अच्छा आधार प्रस्तुत करता है (परिशिष्ट-3).इसमें कई भाषाओं में से किसी एक में अपने नाम से लॉग-इन करके प्रवेश लेने के बाद एक कोड नंबर दिया जाता है.