हम अपने दर्द छिपाते लोग उनको ही ढूंढ कर ज़माने को दिखाने में जुट जाते कोई व्यापार करता कोई भीख की तरह दान में देता दिल में नहीं होती पर पर जुबान और आखों से दिखाते.
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वैसे हाथ तो हमारे देश में भी कमाल दिखा रहा है...चुनाव से पहले भीख की तरह फैल कर वोट लेता है...चुनाव के बाद वही महंगाई की शक्ल में हमारे गाल पर रोज़ तड़ से जड़ा जाता है... जय हिंद...
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क्यों नहीं देंगे आपको मान्यता? क्या मतलब कि पाक्षिक समाचार पत्र के सम्पादक को नहीं मिलेगी, साप्ताहिक को ही मिलेगी? क्या माया वालों को नहीं देते, इंडिया टु डे वालों को नहीं देते? फिर आपको क्यों नहीं देते? मगर हम इतराये घूमते थे कि क्यों इस सरकार से भीख की तरह माँगे? बनने दो हमारा अपना राज्य।