और पूँजीवादी व्यवस्था पुनः समीर अमीन के ही शब्दों में ‘‘ एक विश्व-व्यवस्था है, अतः इसके शिकार लोग इसकी चुनौतियों का सामना भूमंडलीय स्तर पर संगठित होकर ही कर सकते हैं।
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यहाँ कहानीकार की सूक्ष्म दृष्टि इस नये परिवर्तन को उद्घाटित करती है कि भूमंडलीय स्तर पर हो रहे अनैतिक कार्य-व्यापार की जड़ें किस तरह दूरदराज के ग्रामीण अंचलों में धँस रही हैं।
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प्रभात रंजन की कहानियों की सबसे बड़ी ताकत है अपने परिवेश और स्थानीय जीवन के यथार्थ पर मजबूत पकड़ तथा भूमंडलीय स्तर पर हो रहे परिवर्तनों के उस पर पड़ रहे प्रभावों की गहरी समझ।
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एक बात और: पूंजीवाद आज भूमंडलीय स्तर पर जिस आर्थिक संकट से ग्रस्त है, वह १ ९ ३ ० के बाद की आर्थिक मंदी और उससे उत्पन्न फासीवाद की याद ताज़ा कर रहा है।
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अकेले तम्बाकू का सेवन आलमी (भूमंडलीय स्तर) पर इस रोग समूह के लिए सबसे बड़ा जोखिम है जो इस रोग समूह से होने वाली कुल मौतों में से २२ % मौतों की वजह बन रहा है.
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ग्लोबी स्तर पर दस लाख से ज्यादा लोग मलेरिया से मर जाते हैं. भूमंडलीय स्तर पर ही हर आधे मिनिट के बाद एक बच्चा मलेरिया के काम आ जाता है.मलेरिया पर सालाना २०००मिलियन डॉलर खर्च हो रहा है ।
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कहानीकार का उत्तर है: भूमंडलीय स्तर के किसी बड़े बदलाव की उम्मीद में हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने के बजाय स्थानीय और व्यक्तिगत स्तर पर, चाहे छोटे पैमाने के ही सही, मगर बुनियादी बदलाव शुरू करके।
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डा. दयानन्द वज्राचार्य, डा. खुमनारायण पौडेल और डा.र्इशान गौतम कृत पुस्तक “नेपालमा विज्ञान तथा प्रविधि” के मुताबिक बीसवीं सदी के मध्य तक अधिकतर व्याख्यानों पर आधारित जीव विज्ञान की सीमा अणु से भी सूक्ष्म स्तर से भूमंडलीय स्तर तक व्यापक हो रही है ।
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और पूँजीवादी व्यवस्था पुनः समीर अमीन के ही शब्दों में “एक विश्व-व्यवस्था है, अतः इसके शिकार लोग इसकी चुनौतियों का सामना भूमंडलीय स्तर पर संगठित होकर ही कर सकते हैं।” अतः अब जो आंदोलन चलेंगे, उनकी प्रकृति और संस्कृति अब तक के आंदोलनों से भिन्न होगी।
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यानी पृथ्वी के एक हिस्से पर नागासाकी की पुन्राव्रृति हो जाती और यदि इसका व्यास मात्र एक किलोमीटर होता तब भूमंडलीय स्तर पर यानी ग्लोबल लेवल पर भारी तबाही होती लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ क्योंकि खगोल विज्ञानियों ने पहले ही इसकी भविष्यवाणी कर दी थी।