उन्होंने आसेतु हिमालय संपूर्ण भरत की यात्रा की और चार मठों की स्थापना करके पूरे देश को सांस्कृतिक, धार्मिक, दार्शनिक, आध्यात्मिक तथा भौगोलिक एकता के अविच्छिन्न सूत्र में बाँध दिया।
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” जनसंघ का मत है कि भारत तथा अन्य देशों के इतिहास का विचार करने से यह सिद्ध होता है कि केवल भौगोलिक एकता, राष्ट्रीयता के लिए पर्याप्त नहीं है।
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मैं इस मौक़े पर पूरे ज़ोर से कहना चाहता हूं कि हम राज्य की अखण्डता और उसकी सारी भौगोलिक एकता और जातीय वर्गों के लिए समान अधिकार और इंसाफ़ चाहते हैं.
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उन्होंने आसेतु हिमालय संपूर्ण भरत की यात्रा की और चार मठों की स्थापना करके पूरे देश को सांस्कृतिक, धार्मिक, दार्शनिक, आध्यात्मिक तथा भौगोलिक एकता के अविच्छिन्न सूत्र में बाँध दिया।
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यह यात्रा एक दर्जन से अधिक राज्यों से गुजरते हुए 26 जनवरी को जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के लाल चौक पहुंचकर वहां भारत का राष्ट्रीय तिरंगा फहराकर भारत की भौगोलिक एकता का जयघोष करेगी।
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इस भावना के प्रादुर्भाव में निम्न लिखित तत्व सहायक होते हैं-नस्ल की एकता, भाषा की एकता, धर्म की एकता, भौगोलिक एकता, संस्कृति और ऐतिहासिक परंपरा की एकता और राजनीतिक आकांक्षाओं की एकता।
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तब कांग्रेस का स्वतंत्रता आंदोलन चरम पर था, लिहाजा इस आयोग ने जाति, धर्म, आर्थिक हित, भौगोलिक एकता के साथ-साथ गांवों व शहरों के संतुलन को भी राज्य पुनर्गठन का आधार बनाया था.
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नहीं, अभी कुछ और भी बचता है जिसकी भूमिका दर्ज होनी चाहिए! कांग्रेस, गांधी आदि सबका खुलेआम विरोध करने वाली हिंदुत्ववादी ताकतों ने क्या किया? देश की भौगोलिक एकता बनी रहे और उसका ऐतिहासिक विद्रूप न हो, इस दिशा में, उस पूरे जहरीले दौर में सारी हिंदुत्ववादी ताकतें क्या कर रही थीं? ऐसा क्यों है कि इस दौर में हम इनमें से किसी की भी कोई भूमिका नहीं पाते हैं?