इस मन्त्र के अर्थ व भाव के साथ मन के त्रास की मुक्ति और सर्वत: अभय की प्रार्थना / इच्छा से संचालित मनोगति के चलते स्मरण हो आया कि क्यों न इस वैदिक चिन्तन व विचार को सब मित्रों से व अधिकाधिक लोगों से बाँटा जाए।
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इसके अतिरिक्त उसके, उसके कर्मों के, उसकी मनोगति के विषय में जो कुछ उसने स्वयं अपने हाथों लिखा था, उसी का संकलन करके हम पाठकों के सामने रख देते हैं, उसे देखकर वे जो निष्कर्ष निकालना चाहें निकालें, जिस परिणाम पर हम पहुँचे हैं, वह पाठकों को मान्य होगा या नहीं, यह हम नहीं जानते, इसलिए अपनी सम्मति से हम उन्हें बाधित नहीं करेंगे।