जहाँ अपने नितम्बों और स्तनों के दुर्वह भार से पीड़त किन्नरियाँ अपनी स्वाभाविक मन्दगति को नहीं त्यागतीं यद्यपि मार्ग, जिस पर शिलाकार हिम जम गया है, उनकी अंगुलियों व एड़ियों को कष्ट दे रहा है।
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में रजत का ज्ञान होता है, काच में मणि का ज्ञान, पिष्ट युत्तफ जल में, पावडर युत्तफ जल में, दुग्ध् का ज्ञान होता है, और मृगतृष्णा में, जल बुि(होती है, उसी प्रकार हे पशुपते! यह मन्दगति जन मन में, महादेव आपको न मानकर, भ्रान्तिवश किसी अन्य देव को महादेव समझकर भजन करता है।
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महाकवि कालीदास ने अपने अमर ग्रन्थ कुमार सम्भव (प्रथम सर्ग, श्लोक ११, १४) में किन्नरों का मनोहारी वर्णन किया है जिसका हिन्दी अनुवाद है-‘जहाँ अपने नितम्बों और स्तनों के दुर्वह भार से पीड़त किन्नरियाँ अपनी स्वाभाविक मन्दगति को नहीं त्यागतीं यद्यपि मार्ग, जिस पर शिलाकार हिम जम गया है, उनकी अंगुलियों व एड़ियों को कष्ट दे रहा है।
24.
किसी भी ग्रह की सुर्य से दूरी बढ्ने पर उस ग्रह की गति में परिवर्तन होता है, ग्रह अस्त (Planetary Combustion) से उदित (Rising of planet) फिर अतिचारी (Speedy Planet) फिर शीघ्रगामी (Fast planet), फिर सामान्य गति फिर मन्दगति तथा फिर वक्री (Retrograde Planet) हो जाता है.
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कौन कहता है, ये जीवन दौड़ है, कौन कहता है, समय की होड़ है, हम तो रमते थे स्वयं में, आँख मूँदे तन्द्र मन में, आपका आना औ जाना, याद करने के व्यसन में, तनिक समझो और जानो, नहीं यह कोई कार्य है, काल के हाथों विवशता, मन्दगति स्वीकार्य है।
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जिस प्रकार भ्रन्तिवश शुत्तिफ में रजत का ज्ञान होता है, काच में मणि का ज्ञान, पिष्ट युत्तफ जल में, पावडर युत्तफ जल में, दुग्ध् का ज्ञान होता है, और मृगतृष्णा में, जल बुि (होती है, उसी प्रकार हे पशुपते! यह मन्दगति जन मन में, महादेव आपको न मानकर, भ्रान्तिवश किसी अन्य देव को महादेव समझकर भजन करता है।
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श्रोणीभारादलसगमना स्तोकनम्रा स्तनाभ्यांया तत्र स्याद्युवतिविषये सृष्टिराद्येव धातु: ॥ अनुवाद-वहाँ (भवन के अंदर) पहले शरीर वाली, नवयौवन वाली, नुकीले दाँतों वाली, पके हुए बिम्बफ़ल के समान नीचे के ओठ वाली, पतली कमर वाली, डरी हुई हरिणी के समान चितवन वाली, गहरी नाभि वाली, नितम्बों के भार के कारण मन्दगति वाली, स्तनों के कारण कुछ झुकी हुई, युवतियों के विषय में ब्रह्मा की मानो सर्वप्रथम रचना हो (उसे मेरा दूसरा प्राण समझना) ।