| 21. | स्वर के ऊपर बिन्दु तार सप्तक, स्वर के नीचे बिन्दु मन्द्र सप्तक और
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| 22. | १) बहुधा इस राग में आलाप तान मन्द्र निषाद से प्रारम्भ करते हैं।
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| 23. | इस राग का चलन मुख्यत: मन्द्र और मध्य सप्तक के प्रतह्म हिस्से म
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| 24. | इसका तीनों सप्तकों-मन्द्र, मध्य और तार, में विस्तार किया जाता है।
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| 25. | १) बहुधा इस राग में आलाप तान मन्द्र निषाद से प्रारम्भ करते हैं।
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| 26. | इसे गाते व बजाते समय इसका विस्तार मन्द्र व मध्य सप्तकों में अधिक होता है ।
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| 27. | चलन-राग का चलन मन्द्र, मध्य तथा तार तीनों सप्तकों में समान रूप से होता है ।
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| 28. | मन्द्र वायलिन, वायलिनचैलो, वास वायलिन, एक प्रकार की बेला जो घेरे में दबा कर बजायी जाती
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| 29. | इसे गाते व बजाते समय इसका विस्तार मन्द्र व मध्य सप्तकों में अधिक होता है ।
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| 30. | इसे गाते व बजाते समय इसका विस्तार मन्द्र व मध्य सप्तकों में अधिक होता है ।
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