परन्तु खुद तो मानो मरणोत्तर जीवन जी रहे हों वैसी मस्ती में थे ‘ अरे भाई, मैं तो किसी दूसरी बीमारी के लिए अस्पताल में पड़ा था, तब ही मुझ पर हृदय रोग का पहला हमला हुआ।
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मैंने स्वामी शिवानन्द की एक किताब पढी है जिसका नाम है-“ मरणोत्तर जीवन एवम् पुनर्जन्म ” इस किताब में यह बताया गया है कि हम जिसके लिए सच्चे भाव से जो कृत्य करते हैं वह उन्हें मिलता है, इसमें कोई सन्देह नहीं है ।
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' ' सामान्यतया यह कहा जाता है कि विश्व के दो प्रमुख मजहबों ईसाई और इस्लाम में पुनर्जन्म की मान्यता नहीं है, पर उनके धर्म ग्रंथों एवं मान्यताओं पर बारीकी से दृष्टि डालने से प्रतीत होता है कि प्रकारांतर से वे भी मरणोत्तर जीवन की वास्तविकता को मान्यता देते हैं और परोक्ष रूप से उसे स्वीकार करते हैं।
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आगे वाला दिखाई देने वाला हिस्सा, तो लोग आदमियों का सा बना लेते हैं, पर भीतर उसके गन्दगी ही गन्दगी भरी रहती है, इस प्रकार हम अपना वर्तमान तो किसी प्रकार गुजार लेते हैं, पर पीछे का वह पृष्ठ भाग जो मरणोत्तर जीवन से सम्बन्धित है, अँधेरे में ही पड़ा रहता है ।।
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इस कोश ग्रंथ में कुल अट्ठाइस लेख संकलित हैं, जिसमें मंत्र, ब्रह्मांड, पर्यावरण एवं जीवोत्पत्ति, सृष्टि चक्र का वैदिक विवेचन, वेद भारतीय संस्कृति की आधारशिला, मरणोत्तर जीवन: कुछ तथ्य, आत्मा-जन्म-मृत्यु, वेदों में विज्ञान, वैदिक धर्म एवं जाति व्यवस्था, वैदिक कालीन कृषि, षोडश संस्कार तथा कर्मकांड जैसे ज्वलन्त और महत्वपूर्ण विषयों पर वैदिक धर्म के निष्णात् विद्वानों द्वारा लिखे गए लेखों को सम्मिलित किया गया है।