सन 1780-1782 और 1837-1838 में लघु मसूरिका (smallpox) की महामारियों के फलस्वरूप प्लेन्स इंडियन्स (Plains Indians) के बीच तबाही और जनसंख्या में अत्यधिक गिरावट उत्पन्न हुई.
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सीने में या पेट में जलन, सूजाक, चेचक, मसूरिका, मूत्रविकार में नीबू के रस व नमक रहित चावल का मांड या कांजी सेवन करने से लाभ होता है।
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चेचक या मसूरिका रोग के विषय में चरक या सुश्रुत संहिता में अत्यन्त कम वर्णन पाया जाता है जिससे प्रतीत होता है कि पॉचवीं सदी में इस रोग की भयावहता अधिक नहीं थी।
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मसूरिका चेचक के रोग में रोगी व्यक्ति को छाया में आराम करना चाहिए तथा यह ध्यान रखना चाहिए कि वह जहां पर आराम कर रहा है वह स्थान साफ-सुथरा तथा हवादार होना चाहिए।
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सूजाक, चेचक, मसूरिका, रक्तदोष जन्य ज्वर, जलन व दहकता युक्त मूत्रविकार में नींबू के रस व नमक रहित चावल की कांजी या मांड का सेवन करना हितकर रहता है।
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जब रोगी को मसूरिका चेचक हो जाता है तो उसे बुखार हो जाता है, सिर में दर्द होने लगता है, उसकी आंखें पानी से भर आती हैं और उसे जुकाम हो जाता है।
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मसूरिका नामक दुर्दम्य रोग का नाश करने के लिए तीन दिन तक बासी जल के अनुपात से रुद्राक्ष एवं काली मिर्च समभाग एक मासे से तीन मासे तक सेवन कराने से मसूरिका रोग समूल नष्ट हो जाता है
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मसूरिका नामक दुर्दम्य रोग का नाश करने के लिए तीन दिन तक बासी जल के अनुपात से रुद्राक्ष एवं काली मिर्च समभाग एक मासे से तीन मासे तक सेवन कराने से मसूरिका रोग समूल नष्ट हो जाता है
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लघु मसूरिका (Chicken Pox) और खसरा, हालांकि इस समय तक (एशिया से इनके आगमन के बहुत समय बाद) ये यूरोपीय लोगों के बीच स्थानिक और बहुत ही कम मामलों में घातक थे, अक्सर अमेरिकी मूलनिवासियों के लिये जानलेवा साबित हुए.
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मसूरिका (Measles) और जर्मन मसूरिका (German measles), रोमांतिका या खसरा, एक वाइरस (virus) का एवं अत्यंत संक्रामक रोग है, जिसमें सर्दी, जुकाम, बुखार, शरीर पर दाने एवं मुँह के भीतर सफेद दाने हो जाते हैं तथा फेफड़े की गंभीर बीमारियों की आशंका रहती है।