युद्धगाथाओं में योद्धाओं का अपने गौरव और मातृभूमी के लिए तलवारें खींचना, अपने शत्रुओं का हनन करना और फ़िर उनका ससम्मान अंतिम संस्कार भी कर लेने देना.
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मातृभूमी की आजादी के लिये अपना सर्वस्य न्यौछावर करने वाले प्रसिद्ध क्रान्तिकारी चंद्रशेखर आजाद 15 वर्ष की अल्पआयु में गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन से जुङ गये थे।
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चाहे १३ सौ सा होजायें, यह मां और मातृभूमी का एहसास बना रहेगा और ये जो भारत का पसीना है इसकी मादक गंध किसी कोलोन से नही जाने वाली.
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आज मूल अमरीकी अपनी मातृभूमी पर जमीन के छोटे टुकडों पर ३० लाख के करीब की कुल आबादी में रहते हैं जबकी अमरीका की कुल आबादी तीस करोड के आसपास है.
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गांधी, पटेल, आजाद, भगत सिंह, अशफाक सरीखे आजादी के लिये मर मिटने वालों की मातृभूमी पर सांस लेने वालों क्या नयी आजादी के नर्म झोंके मे सांस लेने का मन नही होता?
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चाहे १ ३ सौ सा होजायें, यह मां और मातृभूमी का एहसास बना रहेगा और ये जो भारत का पसीना है इसकी मादक गंध किसी कोलोन से नही जाने वाली.
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इस तरह से यह अभिशप्त दिन हो ' समाज एवं कोल्हान के लिए काला दिन की तरह रहा और कोल्हान मातृभूमी के इन सपूतों की बलि के साथ ही यह स्वतंत्रता संग्राम शांत हो गया।
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वन्दे माँ तरम-इस देश की अपनी परम्परा का द्योतक है, यह धरती हमारी माँ है, सारे देवी देवता अगर हैं तो उनका निवास इस धरती में हीं है, यह मातृभूमी हमें सुजल, सुफल, शितलता देने वाली है ।
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शवयात्रा में ‘ आज हिमाल तुमूकें धत्यूंछौ ', ‘ हम लड़ते रयां भुला … ', ‘ उत्तराखंड मेरी मातृभूमी, मातृभूमी मेरी पितृभूमी … ' और ‘ हमारी ख्वाहिशों का नाम इंकलाब है … ' जैसे गीत गाए गए।
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शवयात्रा में ‘ आज हिमाल तुमूकें धत्यूंछौ ', ‘ हम लड़ते रयां भुला … ', ‘ उत्तराखंड मेरी मातृभूमी, मातृभूमी मेरी पितृभूमी … ' और ‘ हमारी ख्वाहिशों का नाम इंकलाब है … ' जैसे गीत गाए गए।