जहाँ जाबाला से पहली मुलाक़ात रैक्व के लिए समाज और वास्तविक संसार को जानने के पहले वातायन खोलती है, वहीं ऋतुम्भरा का मातृरूप उसे उंगलियाँ पकड़ा कर उस संसार तक ले जाता है और ऋजुका दुःख से उसका पहला साक्षात्कार कराती है.
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ये तीनों अलग-अलग स्वरूप अंततः एक रूप में समाहित हो जाते हैं और वह रूप है ‘ दुर्गा ' जिसकी आराधना हम मातृरूप में करते हैं क्योंकि मातृरूप में कोमलता, संवेदनशीलता, स्नेह, करुणा, प्रेम ये सभी गुण दिखाई देते हैं।
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ये तीनों अलग-अलग स्वरूप अंततः एक रूप में समाहित हो जाते हैं और वह रूप है ‘ दुर्गा ' जिसकी आराधना हम मातृरूप में करते हैं क्योंकि मातृरूप में कोमलता, संवेदनशीलता, स्नेह, करुणा, प्रेम ये सभी गुण दिखाई देते हैं।
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और वह अनुभूति हर उस व्यक्ति को होती है जो एक पुत्र है, पति, पिता या भाई है, इसकी अनुभूति प्रत्येक उस व्यक्ति को होती है जो आत्मीयता के धरातल पर आदमी है या हर उस जीव को होती है जो जैव धरातल पर चैतन्य है, क्योंकि नारी रूप की पूर्णता मातृरूप में होती है।
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थोड़ा पीछे जाएँ तो उस काल के पारंपरिक परिवारों में कम से कम स्त्री के मातृरूप का आदर शेष था और वह उस रूप में किंचित आदर सम्मान की अधिकारिणी हो सकती थी ; किन्तु आधुनिकता की बयार के साथ आए सामाजिक परिवर्तनों के चलते बढ़ती आयु के सदस्यों की कष्टप्रद व अवमाननापूर्ण पारिवारिक स्थिति के इस युग में स्त्री का मातृरूप भी क्रमश: अब व्यवहार में आदरणीय नहीं रहा।
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थोड़ा पीछे जाएँ तो उस काल के पारंपरिक परिवारों में कम से कम स्त्री के मातृरूप का आदर शेष था और वह उस रूप में किंचित आदर सम्मान की अधिकारिणी हो सकती थी ; किन्तु आधुनिकता की बयार के साथ आए सामाजिक परिवर्तनों के चलते बढ़ती आयु के सदस्यों की कष्टप्रद व अवमाननापूर्ण पारिवारिक स्थिति के इस युग में स्त्री का मातृरूप भी क्रमश: अब व्यवहार में आदरणीय नहीं रहा।