आप का यह लेख फिर से एक बार सोचने पर मजबूर करता है कैसे तकीनीकी विकास से मानव ने अपनी सहजता खो दी है. मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल की उतनी ही ज़रूरत है जितनी शारीरिक स्वास्थ्य की.भौतिक सुख के साधनों ने मानसिक वृद्धि पर लगाम लगा दी है आलस्य और हर काम को इंस्टेंट कर लेने कि ख्वाहिश..
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जो गवर्नमेंट प्रजा की मानसिक वृद्धि की तरफ दुर्लक्ष्य करती है और उसे अपना गुलाम समझकर इसलिए दुर्बल कर देती है जिसमें वह गवर्नमेंट की आज्ञा के अनुसार सारे काम-फिर चाहे वे प्रजा के फायदे ही के लिए क्यों न हों-चुप चाप किया करे उसे, कुछ दिनों में यह बात अच्छी तरह मालूम हो जायगी कि छोटे आदमियों से-अर्थात् जिनमें बहुत थोड़ी बुद्धि है उनसे-बड़े-बड़े काम कभी नहीं हो सकते।