अंतर्यामी ईश्वर अपनी मायाशक्ति के जरिये जीवों को उनके कर्मानुसार सांसारिक आवागमन (जन्म-मृत्यु) देतें हैं और एक योनि से दूसरी योनि में भ्रमण करातें हैं.
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भगवान् एक ही है, शैतान उसकी मायाशक्ति का नाम है जिसके द्वारा संसार में सब दोषों का प्रसारहै, पर जो स्वयं भगवान् के नियंत्रण में रहती है।
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इस प्रकार महाविष्णु की मायाशक्ति उनसे भिन्न प्रतीत होने पर जन्म-मृत्युरूप संसार-बंधन को देनेवाली होती है और वही यदि अभेद-बुद्धि से देखी जाय तो संसार-बंधन का नाश करने वाली बन जाती है।
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प्रलय काल की अवधि समाप्त होने पर उस मायाशक्ति में ईश्वर के सकाश से स्फूर्ति होती है, तब विकृत अवस्था को प्राप्त हुई प्रकृति तेईस तत्वों के रूप में परिणत हो जाती है, तब उसे व्यक्त कहते हैं।
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दूसरे शब्दों में, शंकर के मतानुसार मायाशक्ति के कारण ब्रह्म जगत् का निमित्तकारण और उपादान कारण भी है, जबकि वल्लभ ब्रह्म को जगत् का समवायिकारण मानते हैं, क्योंकि जीव और जगत् को उन्होंने ब्रह्म का कार्यरूप माना है।
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उस आत्मा से भी बलवती भगवान की मायाशक्ति ; आदिशक्ति है और उस माया शक्ति से भी श्रेष्ठ व परे वह परमप्रभु परमेश्वर है जिससे श्रेष्ठ और बलवान कुछ भी और कोई भी नहीं है, वही सबका परम अवधि और वही परम गति है ।