किंतू गुरु का विश्राम भंग ना हो, इसलिये कर्ण बिच्छु डंक को सहते रहे, की अचानक परशुरामजी की निद्रा टुटी, और ये जानकर की एक सूद पुत्र में इतनी सहनशीलता नहीं हो सकती कि वो बिच्छु डंक को सहन कर ले, कर्ण के मिथ्याभाषण पर उसे ये श्राप दे दिया की जब उसे अपनी विद्या की सर्वाधिक आवश्यक्ता होगी, तब वह उसके काम नहीं आयेगी।
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महात्मा गाँधी के मतानुसार-कुविचार मात्र हिंसा है, उतावलापन हिंसा है, मिथ्याभाषण हिंसा है, द्वेष हिंसा है, किसी का बुरा चाहना हिंसा है, जिसकी दुनिया को जरूरत है उस पर कब्जा रखना भी हिंसा है, इसके अतिरिक्त किसी को मारना, कटुवचन बोलना, दिल दुःखाना, कष्ट देना तो हिंसा है ही इन सबसे बचना अहिंसा पालन कहा जायेगा ।
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किन्तु इसके साथ ही ब्राह्मण धर्म ने भी कुछ खोया-समाजसुधार का वह उत्साह, प्राणिमात्र के प्रति वब आश्चर्यजनक सहानुभूति और करूणा, तथा वह अद्भुत रसायन, जिसे हौद्ध धर्म ने जन जन को प्रदान किया था एवं जिसके फलस्वरूप भारतिय समाज इतना महान् हो गया कि तत्कालीन भारत के सम्बन्ध में लिखनेवाले एक यूनानी इतिहासकार को यह लिखना पड़ा कि एक भी ऐसा हिन्दू नहीं दिखाई देता, जो मिथ्याभाषण करता हो ; एक भी ऐसी हिन्दू नारी नहीं हैं, जो पतिव्रता न हो ।