जिंदगी, एक शंख है जिसे मुंह भर फुत्कारो-तो बोलता है, अधरों पर डोलता है बाकी तो वह पोल है जितना पीटो उतना बोले, ऐसा ढोल है।
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हताशा और बेबसी की पराकाश्ठा में हलाहल से मुंह भर जाता.... लगता है सब कुछ पलट जाएगा मगर अफसोस कि कुछ भी नहीं पलटता सो मजबूरन जहर को गुटकना पडता है।
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अभी मुझे कोई २ मिनट भी नहीं हुए थे कि सुधा एक बार और झड़ गई और कोई २-३ चमच शहद से मेरा मुंह भर गया जिसे मैं गटक गया।
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लेकिन उनकी घोषणा के साल भर बाद भी यह झील रोता-बिलखता अपने पुराने बदनुमा शक्ल में है जो लोगों को ना केवल मुंह भर चिढ़ा रहा है बल्कि लोगों को जद से डरा भी रहा है।
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अब सडक उडक पे चलते हुए किसी मैदान के बेंच पर बैठे हुए, किसी जलसे में शिरकत करते हुए हमारा मुंह भर आए तो फोंकने कहां जाऎं? लिहाजा हमें ये स्वाभाविक कर्म वहीं अंजाम देना पडता है!
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अब सडक उडक पे चलते हुए किसी मैदान के बेंच पर बैठे हुए, किसी जलसे में शिरकत करते हुए हमारा मुंह भर आए तो फोंकने कहां जाऎं? लिहाजा हमें ये स्वाभाविक कर्म वहीं अंजाम देना पडता है!
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अब सडक उडक पे चलते हुए किसी मैदान के बेंच पर बैठे हुए, किसी जलसे में शिरकत करते हुए हमारा मुंह भर आए तो फोंकने कहां जाऎं? लिहाजा हमें ये स्वाभाविक कर्म वहीं अंजाम देना पडता है!
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चालूराम का मित्र थोड़ा हैरान होकर बोला-तो इसलिए तुम परेशान हो? खर दल बदलने की तो तुम लोगों की पुरानी आदत है सुना है इस समय दूसरे दल वाले अपनी पार्टी में मिलाने के लिए भी मुंह भर कर पैसा दे रहे हैं, घुस जाओ कहीं और।
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इन्हीं मुंह भर आशीषों का प्रत्यक्ष प्रभाव है कि एक ओर पीयूष देश-विदेश के उतार-चढ़ावों, परिवर्तनों, प्रभावों और अभावों के कारण परिणाम एवं निराकरण तक की समझ रखते हैं तो दूसरी ओर पौराणिक युग से विशेष लगाव रखते हुए भी वे अत्याधुनिकता को भली-भांति समझते हुए उससे बराबर बचते हैं।
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इन् हीं मुंह भर आशीषों का प्रत् यक्ष प्रभाव है कि एक ओर पीयूष देश-विदेश के उतार-चढ़ावों, परिवर्तनों, प्रभावों और अभावों के कारण परिणाम एवं निराकरण तक की समझ रखते हैं तो दूसरी ओर पौराणिक युग से विशेष लगाव रखते हुए भी वे अत् याधुनिकता को भली-भांति समझते हुए उससे बराबर बचते हैं।