जलती-बुझती सी इस सलाईन की लगी बोतल से पल-पल ज़िन्दगी मांगती हैं तुम्हारी जर्द आँखों में आज मैंने बचपन देखा है.....!! (अस्पताल से-जर्द हुए भाई के लिए) (५) मौत..... व ह.... उतरती रही आँखों से देह तक देह से हड्डियों तक हड्डियों से साँसों तक दर्द की करवटों में ओह पापा....! मुझे मुआफ करना मैंने मौत से आँखें चुराई हैं.....!! (कैंसर से जूझते पिता-ससुर के लिए) तवायफ़ की इक रात.... तवायफ़ की इक रात.... मैं फिर.....