आज भारतीय अर्थव्यवस्था की वास्तविक विकास की दर राजग शासन के समय के 8 / 9 % से आधा से नीचे 4 / 5 % है, जबकि मुद्रा स्फीति दर 4 / 5 % से बढकर 8 / 9 % हो गई है।
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इस आलोक में अभी हमारी समूची अर्थव्यवस्था पिछले कुछ सालों से उंची मुद्रा स्फीति दर, कृषि उत्पादों के मांग-आपूर्ति असंतुलन, कम विकास दर, औद्योगिक विकास दर में गिरावट, कृषि विकास की उदासीन स्थिति तथा सेवा क्षेत्र पर विकास की ज्यादा निर्भरता से दो-चार रही है।
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इसमें मुद्रा स्फीति दर को संतुलित बनाए रखने, निर्यात क्षेत्र में गिरावट के सिलसिले को थामने, डालर के मुकाबले रुपए के मूल्य में गिरावट से पैदा हुई स्थिति से निबटने और तेल की वैश्विक कीमतों में बढ़ोतरी के परिणामों से निपटने के उपायों पर व्यापक चर्चा होगी।
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इन दिनों ' भृष्टाचार ' उन्मूलन, पूंजी निवेश, आधारभूत अधोसंरचना और लोकतंत्र के सभी अंगों की अपनी-अपनी स्वायत भूमिका को लेकर मीडिया मेंकाफी चर्चा है किन्तु महंगाई से जुडी इस सबसे महत्वपूर्ण खबर कि-खाद्द्य मुद्रा स्फीति दर गिरते-गिरते न केवल शून्य पर बल्कि ऋणात्मक स्तर तक जा गिरी है ;