वचन:-"विच शराबे रंग मुसल्ला,जे मुर्शिद फरमाए!वाकिफ कार कदीमी हुंदा गलती कड़े ना खावे!!६. यह सब आपके सामने हुआ।
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रातों के वक़्त मुसल्ला पर खड़े रहते हैं, ख़ुष अलहानी के साथ (ठहर-ठहर कर) तिलावते क़ुरान करते रहते हैं।
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हमने आपके लिए टोपी और मुसल्ला ख़रीद लिया है और कुरते पजामे का ऑर्डर आपकी रज़ा मिलते ही दे दिया जायेगा.
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हमने आपके लिए टोपी और मुसल्ला ख़रीद लिया है और कुरते पजामे का ऑर्डर आपकी रज़ा मिलते ही दे दिया जायेगा.
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बाद में तीसरे-चौथे दिन शिवाकांत के एक पटठे ने खुलासा किया-साला मुसल्ला, चार पैसे क्या कमा लिया, अपनी औकात भूल गया।
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अगर मियाँ जी हाजी हुए तो वह बाकायदा आफिस के किसी कोने में मुसल्ला बिछाकर हर नमाज के वक्त साष्टांग दण्डवत कर सकते हैं।
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फिर खिड़की से अपना मुँह घुमा उन्होंने हुक्म दिया ' ' सभी तैयार हो जाओ, बुर्के उतार देना, कोई मुसल्ला या लाटा न उठाये।
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अब काजी हैरान कि यह कौन सी बात हुई कि एक तो शराब में मुसल्ला रंगने को कहता है तो दूसरा वेश्या के घर में रात गुजारने को कहता है।
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पता नहीं इन रूहों ने अब्बा हजूर से क्या बातें की थी...फिर खिड़की से अपना मुँह घुमा उन्होंने हुक्म दिया”सभी तैयार हो जाओ, बुर्के उतार देना, कोई मुसल्ला या लाटा न उठाये।
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' ' अर्थात अगर मुर्शिद (गुरू) तुझे हुक्म दे कि नमाज पढ़ने वाला मुसल्ला (चादर जिस पर बैठकर नमाज पढ़ी जाती है) शराब में रंग ले तो तू उसे शराब में रंग ले।